मेवे लगे हुए थे।
दोनों कुमार और भैरोंसिंह टहलते हुए बाग के बीचोंबीच से उसी कदम्ब के पेड़ तले आए जिसके नीचे पहले-पहले भैरोंसिंह के दर्शन हुए थे। बातचीत करने के बाद तीनों ने जरूरी कामों से छुट्टी पा हाथ-मुँह धोकर स्नान किया और संध्योपासन से छुट्टी पाकर वे बाग के मेवों और नहर के जल से संतोष करने के बाद बैठकर यों बातचीत करने लगे––
इन्द्रजीतसिंह––मैं उम्मीद करता हूँ कि कमलिनी, किशोरी और कामिनी वगैरह से इसी बाग में मुलाकात होगी।
आनन्दसिंह––निःसन्देह ऐसा ही है। इस बाग में अच्छी तरह घूमना और यहाँ की हरएक बात का पूरा-पूरा पता लगाना हम लोगों के लिए जरूरी है।
भैरोंसिंह––मेरा दिल भी यही गवाही देता है कि वे सब जरूर इसी बाग में होंगी मगर कहीं ऐसा न हुआ हो कि मेरी तरह से उन लोगों का दिमाग भी किसी कारणविशेष से बिगड़ गया हो।
इन्द्रजीतसिंह––कोई ताज्जुब नहीं अगर ऐसा ही हुआ हो, मगर तुम्हारी जुबानी मैं सुन चुका हूँ कि राजा गोपालसिंह ने कमलिनी को बहुत-कुछ समझा-बुझाकर एक तिलिस्मी किताब भी दी है।
भैरोंसिंह––हाँ, बेशक मैं कह चुका हूँ और ठीक कह चुका हूँ। इन्द्रजीतसिंह-तो यह भी उम्मीद कर सकता हूँ कि कमलिनी को इस तिलिस्म का कुछ हाल मालूम हो गया हो और वह किसी के फंदे में न फँसे।
भैरोंसिंह––इस तिलिस्म में और है ही कौन जो उन लोगों के साथ दगा करेगा? आनन्दसिंह-बहुत ठीक! शायद आप अपनी नौजवान स्त्री और उसके हिमायती लड़कों को बिल्कुल ही भूल गए, या हम लोगों की जुबानी सब हाल सुनकर भी आपको उसका कुछ खयाल न रहा।
भैरोंसिंह––(मुस्कुराकर) आपका कहना ठीक है मगर उन सभी को···
इतना कहकर भैरोंसिंह चुप हो गया और कुछ सोचने लगा। दोनों कुमार भी किसी बात पर गौर करने लगे और कुछ देर बाद भैरोंसिंह ने इन्द्रजीतसिंह से कहा––
भैरोंसिंह––आपको तो यह याद होगा कि लड़कपन में एक दफा मैंने पागलपन की नकल की थी।
इन्द्रजीतसिंह––हाँ, याद है। तो क्या आज भी तुम जान-बूझ कर पागल बने हुए थे?
भैरोंसिंह––नहीं-नहीं, मेरे कहने का मतलब यह नहीं है, बल्कि मैं यह कहता हूँ कि इस समय भी उसी तरह का पागल बन के शायद कोई काम निकाल सकूँ।
आनन्दसिंह––हाँ, ठीक तो है, आप पागल बन के अपनी नौजवान स्त्री को बुलाइए जिस ढंग से मैं बताता हूँ।
कुमार के बताये हुए ढंग से भैरोंसिंह ने पागल बन के अपनी नौजवान स्त्री को कई दफा बुलाया मगर उसका नतीजा कुछ न निकला, न तो कोई उसके पास आया और