पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/५४

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भैरोंसिंह––मुझे कुछ भी याद नहीं।

इन्द्रजीतसिंह––अच्छा बताओ कि तुम इस तिलिस्म के अन्दर कैसे आ पहुँचे?

भैरोंसिंह––केवल मुझी को नहीं बल्कि किशोरी, कामिनी, कमला, लक्ष्मीदेवी, लाड़िली, कमलिनी और इन्दिरा को भी राजा गोपालसिंह ने इस तिलिस्म के अन्दर पहुँचा दिया है, बल्कि मुझे तो सबके आखिर में पहुँचाया है। आपके नाम की एक चिट्ठी भी दी थी मगर अफसोस! आपसे मुलाकात होने न पाई और मेरी अवस्था बदल गई।

इन्द्रजीतसिंह––वह चिट्ठी कहाँ है?

भैरोंसिंह––(इधर-उधर देखकर) जब मेरे बटुए ही का पता नहीं तो चिट्ठी के बारे में क्या कह सकता हूँ?

आनन्दसिंह––मगर यह तो तुम्हें याद होगा कि उस चिट्ठी में क्या लिखा हुआ था?

भैरोंसिंह––क्यों नहीं, मेरे सामने ही तो वह लिखी गई थी। उसमें कोई विशेष बात न थी, केवल इतना ही लिखा था कि "उस गुप्त स्थान से किशोरी, कामिनी इत्यादि को लेकर मैं जमानिया जा रहा था मगर मायारानी की कुटिलता के कारण अपने इरादे में बहुत कुछ उलट-फेर करना पड़ा। जब यह मालूम हुआ हुआ कि मायारानी तिलिस्मी बाग के अन्दर घुस गई है तब लाचार सब औरतों को तिलिस्म के अन्दर पहुँचाता हूँ। बाकी हाल भैरोंसिंह से सुन लेना"––बस इतना लिखा था। मालूम होता है कि पहले का हाल वह आपसे कह चुके हैं।

इन्द्रजीतसिंह––हाँ, पहले का बहुत-कुछ हाल वह हमसे कह चुके हैं।

भैरोंसिंह––क्या यह भी कहा था कि कृष्ण जिन्न का रूप भी उन्हीं कृपानिधान ने धारण किया था?

आनन्दसिंह––नहीं सो तो साफ नहीं कहा था, मगर उनकी बातों से हम लोग कुछ-कुछ समझ गये थे कि कृष्ण जिन्न वही बने थे। खैर, अब तुम खुलासा बताओ कि क्या हुआ?

भैरोंसिंह ने वह सब हाल दोनों कुमारों से कहा जो ऊपर के बयानों में लिखा जा चुका है और जिसमें का बहुत-कुछ हाल राजा गोपालसिंह की जुबानी दोनों कुमार सुन चुके थे। इसके बाद भैरोंसिंह ने कहा––"जब राजा गोपालसिंह को मालूम हो गया कि मायारानी बहुत से आदमियों को लेकर तिलिस्मी बाग के अन्दर जा छिपी है तब वे एक गुप्त राह से छिप कर सब औरतों को साथ लिए हुए उस मकान में पहुँचे जिसमें से कमन्द के सहारे सभी को लटकाते हुए शायद आपने देखा होगा।"

इन्द्रजीतसिंह––हाँ, देखा था, तो क्या उस समय वे औरतें बेहोश थी?

भैरोंसिंह––जी हाँ, न मालूम किस खयाल से उन्होंने सब औरतों को बेहोश कर दिया था मगर इसके पहले यह कह दिया था तुम्हें तिलिस्म के अन्दर पहुँचा देते हैं जहाँ दोनों कुमार हैं, यद्यपि वहाँ पहुँचना बहुत कठिन था मगर अब एक दीवार वाले तिलिस्म को दोनों कुमार तोड़ चुके हैं इसलिए वहाँ तक पहुँचा देने में कोई कठिनता न रही!

इन्द्रजीतसिंह––तो क्या तुम भी उन सातों औरतों के साथ ही उस बाग में उतारे