माधवी––बेशक इसमें पानी कुछ भी नहीं है, केवल कीचड़ मात्र है। तो क्या तुम नहीं जानतीं कि इसके अन्दर पानी के निकास का कोई रास्ता तथा आदमियों के आने जाने के लिए कोई सुरंग या दरवाजा है या नहीं?
मायारानी––मुझे एक दफे गोपालसिंह ने कहा था कि इस कुएँ के नीचे एक तहखाना है, जिसमें तरह-तरह के तिलिस्मी हर्वे और ऐयारों के काम की अपूर्व चीजें हैं।
माधवी––बेशक, यही बात ठीक होगी और उन्हीं चीजों में से कुछ लाने के लिए गोपालसिंह गये होंगे।
मायारानी––शायद ऐसा ही हो!
माधवी––तो बस इससे बढ़कर और कोई तरकीब नहीं हो सकती कि यह कुआँ पाट दिया जाये, जिसमें गोपालसिंह को फिर दुनिया का मुँह देखना नसीब न हो।
मायारानी––निःसन्देह यह बहुत अच्छी राय है, अतः जहाँ तक हो सके इसे कर ही देना चाहिए।
इस समय कुबेरसिंह की फौज टिड्डियों की तरह इस बाग में सब तरफ फैली हुई हुक्म का इन्तजार कर रही थी। माधवी ने अपनी राय भीमसेन और कुबेरसिंह से कही और उनकी आज्ञानुसार फौजी आदमियों ने जमीन खोद कर मिट्टी निकालने और कुआँ पाटने में हाथ लगा दिया।
पहर रात जाते तक कुआँ बखूबी पट गया और उस समय मायारानी के दिल में यह बात पैदा हुई कि अब मुझे गोपालसिंह का कुछ भी डर न रहा।
फौजी सिपाहियों को खुले मैदान या बाग में पड़े रहने की आज्ञा देकर भीमसेन, कुबेरसिंह और माधवी तथा ऐयारों को साथ लिए हुए मायारानी अपने उस खास कमरे की छत पर बेफिक्री और खुशी के साथ चली गई, जिसमें आज के कुछ दिन पहले मालिकाना ढंग से रहती थी।
10
रात अनुमान दो पहर के जा चुकी है। खाप्त बाग के दूसरे दर्जे में दीवानखाने की छत पर कुबेरसिंह; भीमसेन और उसके चारों तरफ ऐयार तथा माधवी के पास बैठी हुई मायारानी बड़ी प्रसन्नता से बातें कर रही है। चाँदनी खूब छिटकी हुई है और बाग की हर एक चीज जहाँ तक निगाह बिना ठोकर खाये जा सकती है, साफ दिखाई दे रही है। बातचीत का विषय अब यह था कि "राजा गोपालसिंह से तो छुट्टी मिल गई, अब राज्य तथा राजकर्मचारियों के लिए क्या प्रबन्ध करना चाहिए?"
जिस छत पर ये लोग बैठे हुए थे, उसके दाहिनी तरफ वाली पट्टी में भी एक सुन्दर इमारत और उसके पीछे ऊँची दीवार के बाद तिलिस्मी बाग का तीसरा दर्जा पड़ता था। इस समय मायारानी का मुँह ठीक उसी इमारत और दीवार की तरफ था, और उस तरफ की चाँदनी दरवाजों के अन्दर घुसकर बड़ी बहार दिखा रही थी। बात