पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२९

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जल्दी में लीला इतना कह तो गई मगर फिर उसने जुबान बन्द कर ली। भैरोंसिंह की चलती-फिरती बातों ने उसका कलेजा हिला दिया और वह समझ गई कि अब मेरा नसीब मुझे धोखा दिया चाहता है, मेरा भेद खुल गया, और अब मेरे कैद होने में ज्यादा देर नहीं है। अब उसके दिल ने भी कहा कि वास्तव में कल ही राजा साहब को तुझ पर शक हो गया था, अगर तू कल ही भाग जाती तो अच्छा था, मगर अब तेरा भागना भी कठिन है। लीला ने कुछ और सोच-विचार के भैरोंसिंह से कहा, "तुम जरा निराले में चलकर मेरी एक बात सुन लो, बेहतर होगा कि हम दोनों आदमी घोड़ा बढ़ाकर जरा आगे निकल चलें, मैं जो बात कहना चाहता हूँ, उसे सुनकर तुम बहुत खुश होओगे।"

भैरोंसिंह––न तो मैं तुम्हारी कुछ सुन सकता हूँ और न तुम्हें छोड़ सकता हूँ, हाँ, एक बात तुम्हें और भी कहे देता हूँ, जिसे सुनकर तुम्हारे दिल का खुटका निकल जायेगा, वह यह है कि जब राजा साहब ने दीवान साहब के नाम की चिट्ठी देकर असली रामदीन को जमानिया भेजा था तो जुबानी कह दिया था कि "इस चिट्ठी में हमने दो सौ सवार भेजने के लिए लिखा है, मगर तुम केवल बीस सवार अपने साथ लाना और जिस दिन हमने माँगा है उसके एक दिन बाद आना।" कहो अब तो बहुत-सी बातें तुम्हारी समझ में आ गई होंगी?

इतना कहकर भैरोंसिंह ने लीला का हाथ पकड़ लिया और राजा साहब की तरफ चलने के लिए कहा मगर लीला को उधर जाना मंजूर न था इसलिए उसने अपनी घोड़ी को न रोका और झटका देकर हाथ छुड़ाना चाहा मगर ऐसा न कर सकी, भैरोंसिंह ने उसे खींचकर जमीन पर गिरा दिया। उसी समय भैरोंसिंह को मालूम हुआ कि यह मर्द नहीं, औरत है।

भैरोंसिंह की यह कार्रवाई देखकर सभी के कान खड़े हो गये। सवारों ने घोड़ा रोक दिया, राजा साहब की सवारी (रथ) खड़ी हो गई, कई सवार अपने घोड़े पर से कूद कर भैरोंसिंह के पास चले आये और इन्द्रदेव भी रथ पर से उतरकर उसके पास जा पहुँचे। आज्ञानुसार लीला की मुश्कें बाँध ली गयीं और पानी मँगा कर उसका चेहरा साफ किया गया और तब लीला को सभी ने पहचान लिया। लीला राजा गोपालसिंह के पास लाई गई और भैरोंसिंह ने सब हाल कहा, जिसे सुन राजा साहब हँस पड़े और बोले, "अब इन्द्रदेव जैसा कहें वैसा करो।"

इन्द्रदेव की आज्ञानुसार लीला रस्सियों से जकड़कर एक खाली रथ पर बैठा दी गई और कई सवार उसकी निगरानी पर मुस्तैद किये गये।

अब सवारी तेजी के साथ जमानिया की तरफ रवाना हुई। दोपहर के बाद जब सवारी जमानिया के पास पहुँची तब इन्द्रदेव ने राजा साहब से धीरे-धीरे कुछ कहा और रथ से उतरकर पैदल ही मैदान का रास्ता लिया और देखते-देखते न मालूम कहाँ चले गये। सवारी खास बाग के दरवाजे पर पहुंची और राजा साहब रथ से उतर कर भैरोंसिंह को साथ लिए हुए बाग के अन्दर चले गये।