मालूम होता था कि इस समय अपने-पराये को पहचान नहीं सकता···
भूतनाथ––(बात काटकर) ओफ, बस करो। वास्तव में उस समय मुझमें अपने पराये को पहचानने की ताकत न थी, मैं अपनी गरज में मतवाला और साथ ही इसके अन्धा भी हो रहा था!
नकाबपोश––हाँ-हाँ, सो तो मैं खुद ही कह रहा हूँ, क्योंकि तुमने उस समय अपने प्यारे लड़के को कुछ भी नहीं पहचाना और रुपये के लालच ने तुम्हें मायारानी के तिलिस्मी दारोगा का हुक्म मानने पर मजबूर किया। (अपने साथी नकाबपोश की तरफ देखकर) उस समय इसकी स्त्री अर्थात् कमला की माँ इससे रंज होकर मेरे ही घर में आई और छिपी हुई थी और जिस चारपाई के पास मैं बैठा हुआ लिख रहा था, उसी पर उसका छोटा बच्चा अर्थात् कमला का छोटा भाई सो रहा था, उसकी माँ अन्दर के दालान में भोजन कर रही थी और उसके पास उसकी बहिन अर्थात् भूतनाथ की साली भी बैठी हुई अपने दुःख-दर्द की कहानी के साथ ही इसकी शिकायत भी कर रही थी, उसका छोटा बच्चा उसकी गोद में था, मगर भूतनाथ···
भूतनाथ––(बात काटता हुआ) ओफ-ओफ! बस करो, मैं सुनना नहीं चाहता, तु-तु-तु तुम में···
इतना कहता हुआ भूतनाथ पागलों की तरह इधर-उधर घूमने लगा और फिर एक चक्कर खाकर जमीन पर गिरने के साथ ही बेहोश हो गया।
14
भूतनाथ के बेहोश हो जाने पर दोनों नकाबपोशों ने भूतनाथ के साथियों में से एक को पानी लाने के लिए कहा और जब वह पानी ले आया तो उस नकाबपोश ने जिसने अपने को दलीपशाह बताया था, अपने हाथ से भूतनाथ को होश में लाने का उद्योग किया। थोड़ी ही देर में भूतनाथ चैतन्य हो गया और नकाबपोश की तरफ देखकर बोला, "मुझसे बड़ी भारी भूल हुई जो आप दोनों को फंसाकर यहाँ ले आया हूँ! आज मेरी हिम्मत बिलकुल टूट गई और मुझे निश्चय हो गया कि अब मेरी मुराद पूरी नहीं हो सकती और मुझे लाचार होकर अपनी जान देनी पड़ेगी।"
नकाबपोश––नहीं-नहीं भूतनाथ, तुम ऐसा मत सोचो, देखो हम कह चुके हैं और तुम्हें मालूम भी हो चुका है कि हम लोग तुम्हारे ऐबों को खोलना नहीं चाहते, बल्कि राजा वीरेन्द्रसिंह से तुम्हें माफो दिलाने का बन्दोबस्त कर रहे हैं। फिर तुम इस तरह हताश क्यों होते हो? होश करो और अपने को सम्हालो।
भूतनाथ––ठीक है, मुझे इस बात की आशा हो चली थी कि मेरे ऐब छिपे रह जायेंगे और मैं इसका बन्दोबस्त भी कर चुका था कि वह पीतल वाली सन्दूकड़ी खोली न जाय, मगर अब वह उम्मीद कायम नहीं रह सकती, क्योंकि मैं अपने दुश्मन को अपने