ताज्जुब है कि ऐयारों पर प्रकट नहीं करते। इसका कोई-न-कोई सबब जरूर है, और तब देवीसिंह की हिम्मत न पड़ी कि अपने लड़के को कुछ कहें या डाटें।
दो घण्टे रात जा चुकी थी जब महाराज सुरेन्द्रसिंह ने वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह को अपने पास बुलवाया। उस समय जीतसिंह पहले ही से महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास बैठे हुए थे, अतः जब दोनों आदमी वहाँ आ गये तो दो घण्टे तक तारासिंह के बारे में बातचीत होती रही और इसके बाद महाराज आराम करने के लिए पलंग पर चले गये। वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह अपने-अपने कमरे में चले आये।
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दूसरे दिन अपने मामूली समय पर पुनः दोनों नकाबपोशों के आने की इत्तिला मिली। उस समय जीतसिंह, वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह, राजा गोपालसिंह, बलभद्रसिंह, इन्द्रदेव और बद्रीनाथ वगैरह अपने यहाँ के कुछ ऐयार लोग भी महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास बैठे हुए थे और उन्हीं नकावपोशों के बारे में तरह-तरह की बातें हो रही थीं। आज्ञानुसार दोनों नकाबपोश हाजिर किए गए और फिर इस तरह बातचीत होने लगी––
तेजसिंह—(नकाबपोशों की तरफ देखकर) तारासिंह की जुबानी सुनने में आया कि भूतनाथ ने आपके दो आदमियों को ऐयारी करके गिरफ्तार कर लिया है।
एक नकाबपोश––जी हाँ, हम लोगों को भी इस बात की खबर लग चुकी है मगर कोई चिन्ता की बात नहीं है। गिरफ्तार होने और बेइज्जती उठाने पर भी वे दोनों भूतनाथ को किसी भी तरह की कोई नहीं तकलीफ न देंगे और न भूतनाथ ही उन्हें किसी तरह की तकलीफ दे सकेगा। यद्यपि उस समय भूतनाथ ने उन दोनों को नहीं पहचाना मगर जब उनका परिचय पायेगा और पहचानेगा तो उसे बड़ा ही ताज्जुब होगा। जो हो मगर भूतनाथ को ऐसा करने की जरूरत न थी। ताज्जुब है कि ऐसे फजूल के कामों में भूतनाथ का जी क्योंकर लगता है। ऐयारी करके जिस समय भूतनाथ ने दोनों को गिरफ्तार किया था उस समय उन दोनों की सूरत देखने के साथ ही छोड़ देना चाहिए था क्योंकि एक दफे भूतनाथ इस दरबार में उन दोनों सूरतों को देख चुका था और जानता था कि आखिर इन दोनों का हाल मालूम होगा ही। अब दोनों को गिरफ्तार करके ले जाने से भूतनाथ की बेचैनी कम न होगी बल्कि और ज्यादा बढ़ जायगी।
तेजसिंह––हाँ हम लोगों ने भी यही सुना था कि जिन सूरतों को देखकर मायारानी का दारोगा और जयपाल बदहवास हो गए थे उन्हीं दोनों को भूतनाथ ने गिरफ्तार किया है।
नकाबपोश––जी हाँ, ऐसा ही है।
तेजसिंह––तो क्या वे दोनों स्वयं इस दरबार में आये थे या आप लोगों ने उन दोनों के जैसी सूरत बनाई थी?