पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२२३

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हमारे राजा साहब के दरबार में जाया करते है मैं रंज होने का मौका नही दूँगा और इन दोनों में से केवल एक ही को उठा जाकर और उसी से अपना काम निकालूँगा।

इतना कह उस देहाती ने दोनों नकाबपोशों के चेहरे पर से नकाब उलट दी मगर असली सूरत पर निगाह पड़ते ही चौंक के उस औरत की तरफ देखकर कहा, "ओफ ओह, ये सूरतें तो वे ही हैं जिन्होंने दरबारे-आम में दारोगा और जैपाल को बदहवास कर दिया था। पहले दिन जब एक नकाबपोश ने अपने चेहरे पर से नकाब हटाई थी तो दारोगा के सिर में चक्कर[] आ गया था, और दूसरे दिन जब दूसरे नकाबपोश ने सूरत दिखाई तो जयपाल की जान शरीर से निकलने की तैयारी करने लगी थी।[]

इसी बीच में वह औरत भी उठकर हर तरह से दुरुस्त हो गई थी जिसे थोड़ी देर पहले दोनों नकाबपोश मुर्दा समझ कर उठा ले चले थे। असल में उसका हाथ कटा हुआ हाथ लगाकर दिखा दिया गया था।

ऊपर की बातचीत से हमारे पाठक समझ गये होंगे कि ये देहाती महाशय असल में भूतनाथ हैं और दोनों औरतें उसके नौजवान शागिर्द तथा मर्द हैं।

भूतनाथ की आखिरी बात सुनकर उसके एक शागिर्द, ने जो औरत की सूरत में था कहा, "क्या ये ही दोनों हमारे महाराज के दरबार में जाया करते हैं?"

भूतनाथ––दरबार में जब नकाबपोशों ने सूरत दिखाई थी तब दो दफे इन्हीं दोनों की सूरतें देखने में आई थीं, मगर मैं नहीं कह सकता कि वहाँ जाने वाले दोनौं नकाबपोश यही हैं। मेरा दिल तो यही गवाही देता है कि दोनों नकाबपोश कोई दूसरे हैं और जब दरबार में जाते हैं तो केवल नकाब ही डालकर नहीं बल्कि अपनी सूरतें भी बदल कर जाते हैं और उस दिन इन्हीं की सी सूरत बनाकर गये।

शागिर्द––बेशक ऐसा ही है।

भूतनाथ––खैर अब मैं इन दोनों में से एक को छोड़ न जाऊँगा जैसा कि पहले इरादा कर चुका था, बल्कि दोनों ही को उठकर ले जाऊँगा और असली भेद मालूम करके ही छोडूँगा।

इतना कह के भूतनाथ ने ऐयारी ढंग पर उन दोनों नकाबपोशों की गठरी बाँधी और तीनों आदमी मिलजुल कर उन्हें उठा ले गये।


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नकाबपोशों के चले जाने के बाद जब केवल घर वाले ही वहाँ रह गये तब राजा वीरेन्द्रसिंह ने अपने पिता से तारासिंह की बाबत जो कुछ हाल हम ऊपर लिख आये हैं


  1. देखिए चन्द्रकान्ता संतति उन्नीसवाँ भाग, दसवाँ बयान।
  2. वहीं, बारहवाँ बयान।