एक ही सबूत से मैं तुम्हारी दिलजमई कर देती हूँ, इसे पढ़ो और माधवी रानी को सुनाओ। (माधवी से) देखो बहिन, तुम इस बात का खयाल न करना कि मैं तुम्हें आप कहकर सम्बोधन नहीं करती, मेरा तुम्हारा अब दोस्ती और मुहब्बत का नाता हो चुका इसलिए अब इन बातों का खयाल नहीं हो सकता।
माधवी––मैं भी यही पसन्द करती हूँ और इस बारे में अपने लिए भी तुमसे पहले ही माफी माँग लेती हूँ।
भीमसेन ने पत्र पढ़ा और माधवी को सुनाया।
भीमसेन––इस पत्र से तो बड़ा काम निकल सकता है! यह कब का लिखा है और तुम्हारे हाथ क्योंकर लगा तथा जिस अँगूठी का इसमें जिक्र किया गया है वह कहाँ है?
मायारानी––(अँगूठी दिखाकर) अँगूठी भी मुझे मिल गई है और यह चिट्ठी आज ही की लिखी है और आज ही मेरे हाथ लगी है। अभी इसकी कार्रवाई बिल्कुल बाकी है।
भीमसेन––अफसोस इतना ही है कि मेरे ऐयारों में से कोई भी रामदीन को नहीं जानता...
मायारानी––क्या हर्ज है, यह मेरी ऐयारा लीला बखूबी उसकी तरह बनकर काम निकाल सकती है, तुम्हारे ऐयार इसकी मदद पर मुस्तैद रह सकते हैं, और यह जब रामदीन की सूरत बनेगी तो इसे अच्छी तरह देख भी सकते हैं।
भीमसेन––(चिट्ठी मायारानी के हाथ में देकर) अच्छा अब तुम दोनों को जो कुछ गुप्त बातें करनी हैं कर लो पीछे मैं इस विषय में कुछ कहूँ सुनूँगा।
इतना कहकर भीमसेन उठ खड़ा हुआ और कुबेरसिंह को साथ लिए हुए कुछ दूर चला गया और मौका समझकर लीला भी कुछ पीछे हट गई।
मायारानी––जो कुछ पीछे कहोगी-सुनोगी उसे मैं पहले ही निपटा देना चाहती हूँ। सच पूछो तो मेरी और तुम्हारी अवस्था बराबर है, तुम भी विधवा हो और मैं भी विधवा हूँ, क्योंकि मैं वास्तव में गोपालसिंह की स्त्री नहीं हूँ और यह बात सभी को मालूम हो गई, बल्कि तुम भी सुन चुकी होगी।
माधवी––हाँ, मैं सुन चुकी हूँ, और मैंने यह भी सुना था कि तुमने राजा गोपालसिंह को वर्षों तक कैद कर रखा था पर आखिर कमलिनी ने उन्हें छुड़ा दिया। तो तुमने ऐसा क्यों किया और उन्हें मार ही क्यों न डाला?
मायारानी––यही मुझसे भूल हो गई। तिलिस्म के दो-चार भेद जो मुझे मालूम न थे जानने के लिए मैंने ऐसा किया था, मुझे उम्मीद थी कि वह कैद की तकलीफ उठाकर बता देगा। तब उसे मार डालती तो आज यह दिन देखना नसीब न होता, मैं तिलिस्म की बदौलत अकेली ही राजा वीरेन्द्रसिंह ऐसे दस को जहन्नुम में पहुँचा देने की ताकत रखती थी। अब भी अगर गोपालसिंह को मैं पकड़ पाऊँ और मार सकूँ तो पुनः तिलिस्म की रानी होने से मुझे कोई भी रोक नहीं सकता और तब मैं बात-की-बात में तुम्हें राजगृही और गया की रानी बना सकती हूँ, मगर उस बात का सिलसिला तो टूटा ही जाता है।