तो शायद काम निकल जाये और किसी को इस बात की खबर भी न हो।
इस तरह की बातें हो रही थीं कि उनके कानों में घोड़े के टापों की आवाज आई और दोनों ने घूमकर पीछे की तरफ देखा। एक नकाबपोश सवार आता हुआ दिखाई पड़ा जिस पर निगाह पड़ते ही भूतनाथ ने देवीसिंह से कहा, "यह भी जरूर उन्हीं में से है, भला एक दफे तो और कोशिश कीजिए और जिस तरह हो सके, इसे गिरफ्तार कीजिए, फिर जैसा होगा देखा जायेगा। बस, अब इस समय सोचने-विचारने का मौका नहीं है।"
वह सवार बिल्कुल बेफिक्री के साथ धीरे-धीरे आ रहा था, अतः ये दोनों भी उसके रास्ते के दोनों तरफ पेड़ों की आड़ देकर उसे गिरफ्तार करने को नीयत से खड़े हो गये। जब वह नकाबपोश सवार इन दोनों की सीध पर पहुँचा और आगे बढ़ना ही चाहता था, तभी भूतनाथ के हाथ की फेंकी हुई कमन्द उसके घोड़े के गले में जा पड़ी। घोड़ा भड़ककर उछलने-कूदने लगा और तब दोनों ने लपककर घोड़े की लगाम थाम ली। उस सवार ने खंजर खींचकर वार करना चाहा, मगर कुछ सोचकर रुक गया और साथ ही इसके इन दोनों को भी उसने लड़ने के लिए तैयार देखा।
नकाबपोश––(भूतनाथ से) तुम मुझे व्यर्थ क्यों रोकते हो? मुझसे क्या चाहते हो?
भूतनाथ––हम लोग तुम्हें किसी तरह की तकलीफ देना नहीं चाहते, बस, थोड़ी देर के लिए घोड़े से नीचे उतरो, और हमारी दो-चार बातों का जवाब देकर जहाँ जी में आवे, चले जाओ।
नकाबपोश––बहुत अच्छा, मगर नकाब हटाने के लिए जिद न करना।
इतना कहकर नकाबपोश घोड़े के नीचे उतर पड़ा और भूतनाथ ने उससे कहा, "लेकिन तुम्हें अपने चेहरे से नकाब हटाना पड़ेगा, और यह काम सबसे पहले होगा।" यह कहते-कहते भूतनाथ ने अपने हाथ से उसके चेहरे की नकाब उलट दी, मगर उसके चेहरे पर निगाह पड़ते ही चौंककर बोल बैठा, "हैं, यह तो मेरी स्त्री है जो नकाबपोशों के घर में दिखाई पड़ी थी!"
6
अपनी स्त्री की सूरत देखकर जितना ताज्जुब भूतनाथ को हुआ उतना ही आश्चर्य देवीसिंह को भी हुआ। यह विचारकर रंज-गम और गुस्से से देवीसिंह का सिर घूमने लगा कि इसी तरह मेरी स्त्री भी अवश्य नकाबपोशों के यहाँ होगी और हम लोगों को उसकी सुरत देखने में किसी तरह का भ्रम नहीं हुआ। यदि सोचा जाये, कि जिन दोनों औरतों को हम लोगों ने देखा था, वे वास्तव में हम लोगों की औरतें न थीं, बल्कि वे औरतों की सूरत में ऐयार थे तो इसका निश्चय भी इसी समय हो सकता है। वह औरत सामने मौजूद ही है, देख लिया जाये कि कोई ऐयार है या वास्तव में भूतनाथ की स्त्री है।
उस स्त्री ने भूतनाथ के मुँह यह से सुनकर कि 'यह तो मेरी स्त्री है', क्रोध-भरी