पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२०२

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नकाबपोश––(रंज के साथ) जबरदस्ती निकाल बाहर करेंगे। आप लोग अपने तिलिस्मी खंजर के भरोसे न भूलियेगा, ऐसे-ऐसे तुच्छ खंजरों का काम हम लोग अपने नाखूनों से लेते हैं। बस, सीधी तरह कदम उठाइये और इस जमीन को अपनी मिलकियत न समझिये।

नकाबपोशों की बातें यद्यपि भूतनाथ और देवीसिंह को बुरी मालूम हुईं, मगर बहुत-सी बातों को सोच-विचारकर चुप ही रहे और तकरार करना उचित न जाना। सब नकाबपोशों ने मिलकर उन्हें खोह के बाहर किया और लौटते समय भूतनाथ और देवीसिंह से एक नकाबपोश ने कहा, "बस, अब इसके अन्दर आने का खयाल न कीजियेगा, कल दरवाजा खुला रह जाने के कारण आप लोग चले आये, मगर अब ऐसा मौका न मिलेगा।"

नकाबपोशों के चले जाने के बाद भूतनाथ और देवीसिंह वहाँ से रवाना हुए और कुछ दूर जाकर जंगल में एक घने पेड़ की छाया देखकर बैठ गये और यों बातचीत करने लगे––

भूतनाथ––कहिये, अब क्या इरादा है?

देवीसिंह बात तो यह है कि हम लोग नकाबपोशों के घर जाकर बेइज्जत हो गये। चाहे ये दोनों नकाबपोश कुछ भी कहें मगर मुझे निश्चय है कि दरबार में आने वाले दोनों नकाबपोश वही हैं जिनके हम मेहमान हुए थे। मुझे तो शर्म आयेगी जब दरबार में मैं उन्हें अपने सामने देखूँगा। इसके अतिरिक्त यदि यहाँ से जाकर अपनी स्त्री को घर में न देखूँगा, आर्श्चय रंज और क्रोध की कोई हद न रहेगी।

भूतनाथ––यद्यपि मैं एक तौर पर बेहया हो गया हूँ, परन्तु आज की बेइज्जती दिल को फाड़े डालती है। बहुत ऐयारी की, मगर ऐसा जिक्र कभी नहीं उठा था, मेरी तो यहाँ से हटने की इच्छा नहीं होती, यही जी में आता है कि इनमें से एक-न-एक को अवश्य पकड़ना चाहिए और अपनी स्त्री के विषय में इतना कहना काफी है कि यदि अपने घर जाकर अपनी स्त्री को पा लिया तो मैं भी अपनी स्त्री की तरफ से बेफिक्र हो जाऊँगा।

देवीसिंह––करने के लिए तो हम लोग बहुत कुछ कर सकते हैं, मगर जब मैं उनके बर्ताव पर ध्यान देता हूँ, तव लाचारी आकर पल्ला पकड़ लेती है। जब एक बार उन्होंने हम लोगों को गिरफ्तार किया तो हर तरह का सलूक कर सकते थे, परन्तु किसी तरह की बुराई हमारे साथ नहीं की। दूसरे वे लोग स्वयं हमारे महाराज के दरबार में हाजिर हुआ करते हैं और समय पर अपने को प्रकट कर देने का वादा भी कर चुके हैं, ऐसी अवस्था में उनके साथ खोटा बर्ताव करते डर लगता है। कहीं ऐसा न हो कि वे लोग रंज हो जायें और दरबार में आना छोड़ दें, अगर ऐसा हुआ तो बड़ी बदनामी होगी और कैदियों का मामला भी आजकल के ढंग से अधूरा ही रह जायेगा!

भूतनाथ––आप बात तो ठीक कहते हैं, परन्तु···

देवीसिंह––नहीं, अब इस समय तरह देना ही उचित है। जिस तरह मैं अपनी बदनामी का खयाल करता हूँ, उसी तरह तुमको भी तो खयाल होगा!

भूतनाथ––जरूर! यदि नकाबपोशों का कोई अकेला आदमी कब्जे में आ जाये