पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२०

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लीला––मैं प्रसिद्ध मायारानी की ऐयारा हूँ और उन्हीं के साथ यहाँ तक आई भी हूँ। यह दुनिया का कायदा है कि एक से दूसरे को मदद पहुँचती है। अब जिस तरह आपको मायारानी से मदद पहुँच सकती है, उसी तरह आप मायारानी की भी मदद कर सकती हैं। वाह-वाह, यह समागम तो बहुत ही अच्छा हुआ। अगर आजकल मायारानी मुसीबत के दिन काट रही हैं तो क्या हुआ, मगर फिर भी वह तिलिस्म की रानी रह चुकी हैं और जो वह कर सकती हैं, किसी दूसरे से नहीं हो सकता। आप लोगों का एक हो जाना बहुत ही मुनासिब होगा, तब आप लोग जो चाहेंगी, कर सकेंगी।"

माधवीदेवी––(खुश होकर) मायारानी कहाँ हैं? उन्हें तो राजा वीरेन्द्रसिंह कैद करके चुनार ले गये थे।

लीला––जी हाँ, मगर मैं अभी कह चुकी हूँ कि मायारानी आखिर तिलिस्म की रानी हैं, इसलिए जो कुछ वह कर सकती हैं, किसी दूसरे के किए नहीं हो सकता। राजा वीरेन्द्रसिंह ने उन्हें कैद किया तो क्या हुआ, उनका छूटना कोई मुश्किल न था!

माधवीदेवी––बेशक-वेशक, अच्छा बताओ, वह कहाँ हैं?

लीला––यहाँ से थोड़ी दूर पर खड़ी हैं। किसी सरदार को भेजिये, उनका इस्तकबाल करके यहाँ ले आवे, दो-तीन सौ कदम से ज्यादा न चलना पड़ेगा।

माधवीदेवी––मैं खुद उन्हें लेने के लिए चलूँगी।

लीला––इससे बढ़कर और क्या हो सकता है? अगर आप उनकी इज्जत करेंगी तो वह भी आपके लिए जान तक देना जरूरी समझेंगी।

लीला ने अपनी लम्बी-चौड़ी बातों में माधवी को खूब उलझाया, यहाँ तक कि माधवी अपने साथ भीमसेन और कुबेरसिंह तथा सिपाहियों को लेकर मायारानी के पास गयी और उसे बड़ी खातिर और इज्जत के साथ अपने डेरे पर ले आई। जल मँगवाकर हाथ-मुँह धुलवाया और फिर बातचीत करने लगी।

माधवीदेवी––(मायारानी से) आपको वीरेन्द्रसिंह की कैद से छूट जाने पर मैं मुबारकबाद देती हूँ यद्यपि आपके लिए यह कोई बड़ी बात न थी।

मायारानी––बेशक, यह कोई बड़ी बात न थी, इस काम को तो अकेली मेरी सखी या ऐयारा लीला ही ने कर दिखाया। इस समय आपसे मिलकर मैं बहुत खुश हुई और इसमें अब शक करने की कोई जगह न रही कि आप पुनः गया की रानी और मैं जमानिया की मालिक बन जाऊँगी। दुनिया में एक का काम दूसरे हुआ ही करता है और जब हम आप एक दिल हो जायेंगे तो वह कौन-सा काम है जिसे नहीं कर सकते! मुझे आपके कैद होने की भी खबर लगी थी और मुझे इस बात का बहुत रंज था कि आपको मेरी छोटी बहिन कमलिनी ने कैदखाने की सूरत दिखाई थी।

माधवीदेवी––इधर तो यह सुनने में आया है कि आपसे और कमलिनी से कोई नाता नहीं है और लक्ष्मीदेवी भी प्रकट हो गई है। तथा उसे राजा वीरेन्द्रसिंह चुनार ले गये हैं।

मायारानी––(मुस्कुराकर) बेशक, ऐसा ही है, मगर जिस जमाने का मैं जिक्र कर रही हूँ, उस जमाने में वह मेरी ही बहिन कहलाती थी। और लक्ष्मीदेवी को राजा

च॰ स॰-5-1