पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१९९

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उधर घूमते देख दोनों कुमारों को बड़ा ही ताज्जुब हुआ और वे गौर से उन आदमियों की तरफ देखने लगे जो बिल्कुल जंगली और भयानक मालूम पड़ते थे।

वे आदमी गिनती में पाँच थे और उन लोगों ने भी दोनों कुमारों को देखकर उतना ही ताज्जुब किया जितना कुमारों ने उनको देखकर। वे लोग इकट्ठे होकर कुमार के पास चले आये और उनमें से एक ने आगे बढ़कर कुमार से पूछा, "क्या आप दोनों के साथ भी वही सलूक किया गया जो हम लोगों के साथ किया गया था? मगर ताज्जुब है कि आपके कपड़े और हरबे छीने नहीं गए और आप लोगों के चेहरे पर भी किसी तरह का रंज नहीं मालूम पड़ता!"

इन्द्रजीतसिंह––तुम लोगों के साथ क्या सलूक किया गया? तुम लोग कौन हो?

आदमी––हम लोग कौन हैं, इसका जवाब देना सहज नहीं है और न आप थोड़ी देर में इसका जवाब सुन ही सकते हैं, मगर आप अपने बारे में सहज में बता सकते हैं कि किस कसूर पर यहाँ पहुँचाए गये?

इन्द्रजीतसिंह––हम दोनों तिलिस्म को तोड़ते और कई कैदियों को छुड़ाते हुए अपनी खुशी से यहाँ तक आये हैं और अगर तुम लोग कैदी हो तो समझ रखो इस कैद की अवधि पूरी हो गई और बहुत जल्द अपने को स्वतन्त्र विचरते हुए देखोगे।

आदमी हमें कैसे विश्वास हो कि जो कुछ आप कह रहे हैं वह सच है?

इन्द्रजीतसिंह––अभी नहीं तो थोड़ी देर में स्वयं विश्वास हो जायेगा।

इतना कहकर कुमार आगे की तरफ बढ़े और वे लोग उन्हें घेरे हुए साथ-साथ जाने लगे। इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को विश्वास हो गया कि सरयू की तरह ये लोग भी इस तिलिस्म में कैद किये गये हैं और दारोगा या मायारानी ने इनके साथ यह सलूक किया है, और वास्तव में बात भी ऐसी ही थी।

इन आदमियों की उम्र यद्यपि बहुत ज्यादा न थी, मगर रंज, गम और तकलीफ की बदौलत सूखकर काटा हो गये थे। सिर और दाढ़ी के बालों ने बढ़ और उलझकर उनकी सूरत डरावनी कर दी थी और चेहरे की जर्दी तथा गड्ढे में घुसी हुई आँखें उनकी बुरी अवस्था का परिचय दे रही थीं।

इस बाग में पानी का एक चश्मा था और वही इन कैदियों की जिन्दगी का सहारा था, मगर इस बात का पता नहीं लग सकता था कि पानी कहाँ से आता है और निकलकर कहाँ चला जाता है। इसी नहर की बदौलत यहाँ की जमीन का बहुत बड़ा हिस्सा तर हो रहा था और इस सबब से उन कैदियों को केला वगैरह खाकर अपनी जान बचाये रहने का मौका मिलता था।

बाग के बीचोंबीच में बीस या पच्चीस हाथ ऊँचा एक बुर्ज था और उस बुर्ज के चारों तरफ स्याह पत्थर का कमर बराबर ऊँचा चबूतरा बना हुआ था, मगर इस बात का पता नहीं लगता था कि इस बुर्ज पर चढ़ने के लिए कोई रास्ता भी है या नहीं, अगर है तो कहाँ से है। दोनों कुमार उस चबूतरे पर बेधड़क जाकर बैठ गये और तब इन्द्रजीतसिंह ने उन कैदियों की तरफ देखकर कहा, "कहो, अब तुम्हें विश्वास हुआ कि जो कुछ हमने कहा था, वह सच है?"