ही समय पाकर अपने को प्रकट ही करेंगे, केवल मुकदमे की उलझन खोलने और कैदियों को निरुत्तर करने के लिए अपने को छिपाये हुए हैं।
तेजसिंह––आप लोगों को शायद यह मालूम नहीं है कि भूतनाथ ने देवीसिंह को अपना दोस्त बना लिया है। जिस समय भूतनाथ के मुकदमे का बीज रोपा गया था उसके कई घण्टे पहले ही देवीसिंह ने उसकी सहायता करने की प्रतिज्ञा कर दी थी, क्योंकि वह भूतनाथ की चालाकी, ऐयारी तथा उसके अच्छे कामों से प्रसन्न थे।
नकाबपोश––ठीक है, तब तो ऐसा होना ही चाहिए परन्तु कोई चिन्ता नहीं, भूतनाथ वास्तव में अच्छा आदमी है और उसे महाराज की सेवा का उत्साह भी है।
तेजसिंह––इसके अतिरिक्त उसने हमारे कई काम भी बड़ी खूबी के साथ पूरे किये हैं।
नकाबपोश––ठीक है।
तेजसिंह––हाँ, मैं एक बात आपसे पूछना चाहता हूँ।
नकाबपोश––आज्ञा!
तेजसिंह––निःसन्देह भूतनाथ और देवीसिंह आप लोगों का भेद लेने के लिए गये हैं, अत: आश्चर्य नहीं कि वे दोनों उस ठिकाने तक पहुँच गये हों जहाँ आप लोग रहते हैं और आपको उनका कुछ हाल भी मालूम हुआ हो!
नकाबपोश––न तो ये हम लोगों के डेरे तक पहुँचे और न हम लोगों को उनका कुछ हाल ही मालूम है। हम लोगों के विषय में हजारों आदमी बल्कि यों कहना चाहिए कि आजकल यहाँ जितने लोग इकट्ठे हो रहे हैं, सभी आश्चर्य करते हैं और इसलिए जब हम लोग यहाँ आते हैं तो सैकड़ों आदमी चारों तरफ से घेर लेते हैं और जाते समय तो कोसों तक का पीछा करते हैं इसलिए हम लोगों को भी बहुत घूम-फिर तथा लोगों को भुलावा देते हुए अपने डेरे की तरफ जाना पड़ता है।
तेजसिंह––तब तो उन दोनों का न लौटना आश्चर्य है।
नकाबपोश––बेशक, अच्छा तो आज हम लोग कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह का कुछ हाल महाराज को सुनाते जायँ, आखिर आ गये हैं तो कुछ काम करना ही चाहिए।
वीरेन्द्रसिंह––(ताज्जुब से) उनका कौन-सा हाल?
नकाबपोश––वही तिलिस्म के अन्दर का हाल। जब तक राजा गोपालसिंह वहाँ थे तब तक का हाल तो उनकी जुबानी आपने सुना ही होगा मगर उसके बाद क्या हुआ और तिलिस्म में उन दोनों भाइयों ने क्या किया, सो न सुना होगा। यह सब हाल हम लोग सुना सकते हैं, यदि आज्ञा हो तो...।
वीरेन्द्रसिंह––(ज्यादा ताज्जुब के साथ) कब तक का हाल आप सुना सकते हैं?
नकाबपोश––आज तक का हाल, बल्कि आज के बाद भी रोज-रोज का हाल तब तक बराबर सुना सकते हैं जब तक उनके यहाँ आने में दो घण्टे की देर हो।
वीरेन्द्रसिंह––हम बड़ी प्रसन्नता से उनका हाल सुनने के लिए तैयार हैं, बल्कि हम चाहते हैं कि गोपालसिंह और अपने पिताजी के सामने वह हाल सुनें।
च॰ स॰-5-17