करते रहे, यहाँ तक कि सवेरा हो गया। कई नकाबपोश उस कमरे को खोलकर भूतनाथ तथा देवीसिंह के पास पहुँचे और उन्हें बाहर चलने के लिए कहा।
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महाराज से जुदा होकर देवीसिंह और बलभद्रसिंह से बिदा होकर भूतनाथ ये दोनों ही नकाबपोशों का पता लगाने के लिए चले गये। बचा हुआ दिन और तमाम रात तो किसी ने इन दोनों की खोज न की मगर दूसरे दिन सवेरा होने के साथ ही इन दोनों की तलबी हुई और थोड़ी ही देर में जवाब मिला कि उन दोनों का पता नहीं है कि कहाँ गये और अभी तक क्यों नहीं आये। हमारे महाराज समझ गये कि देवीसिंह की तरह भूतनाथ भी उन्हीं दोनों नकाबपोशों का पता लगाने चला गया, मगर उन दोनों के न लौटने से एक तरह की चिन्ता पैदा हो गई और लाचार होकर आज दरबार-आम का जलसा बन्द रखना पड़ा।
दरबारे-आम के बन्द होने की खबर वहाँ वालों को तो मिल गई, मगर वे दोनों नकाबपोश अपने मामूली समय पर आ ही गये और उनके आने की इत्तिला तुरंत राजा वीरेन्द्रसिंह से की गई। उस समय राजा वीरेन्द्रसिंह एकान्त में तेजसिंह तथा और भी कई ऐयारों के साथ बैठ हुए देवीसिंह और भूतनाथ के बारे ही में बातें कर रहे थे। उन्होंने ताज्जुब के साथ नकाबपोशों का आना सुना और उसी जगह हाजिर करने का हुक्म दिया।
हाजिर होकर दोनों नकाबपोशों ने बड़े अदब से सलाम किया और आज्ञा पाकर महाराज से थोड़ी दूर पर तेजसिंह के बगल में बैठ गये। इस समय तखलिये का दरबार था तथा गिनती के मामूली आदमी बैठे हुए थे। राजा वीरेन्द्रसिंह को नकाबपोश की बातें सुनने का शौक था, इसलिए तेजसिंह के बगल ही में बैठने की आज्ञा दी और स्वयं बातचीत करने लगे।
वीरेन्द्रसिंह––आज भूतनाथ के न होने से मुकदमे की कार्रवाई रोक देनी पड़ी।
नकाबपोश––(अदब से हाथ जोड़कर)जी हाँ; मैंने यहाँ पहुँचने के साथ ही सुना कि "कल से देवीसिंहजी और भूतनाथ का पता नहीं है, इसलिए आज दरबार न होगा।" मगर ताज्जुब की बात है कि भूतनाथ और देवीसिंहजी एकसाथ कहाँ चले गये। मैं तो यही समझता हूँ कि भूतनाथ हम लोगों का पता लगाने को निकला है और उसका ऐसा करना कोई ताज्जुब की बात भी नहीं, मगर देवीसिंहजी बिना मर्जी के चले गये इस बात का ताज्जुब है।
वीरेन्द्रसिंह––देवीसिंह बिना मर्जी के नहीं चले गये बल्कि हमसे पूछ के गये हैं।
नकाबपोश––तो उन्हें महाराज ने हम लोगों का पीछा करने की आज्ञा क्यों दी? हम लोग तो महाराज के ताबेदार स्वयं ही अपना भेद कहने के लिए तैयार हैं और शीघ्र