पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१९१

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उस समय मालूम हुआ कि उस सूराख में से थोड़ी-थोड़ी रोशनी भी आ रही है। भूतनाथ ने नीचे खड़े रहकर चारपाई को मजबूती के साथ थामा और बुनावट के सहारे अँगूठा अड़ाते हुए देवीसिंह ऊपर चढ़ गये। वे सूराख टेढ़े अर्थात् दूसरी तरफ को झुकते हुए थे। एक सुराख में गर्दन डालकर देवीसिंह ने देखना शुरू किया। उधर नीचे की मंजिल में एक बहुत बड़ा कमरा था जिसकी ऊँची छत इस कमरे की छत के बराबर पहुँची हुई थी जिसमें देवीसिंह और भूतनाथ थे। उस कमरे में सजावट की कोई चीज न थी सिर्फ जमीन पर साफ-सफेद फर्श बिछा हुआ और दो शमादान जल रहे थे। वहाँ पर देवीसिंह ने दो नकाबपोशों को ऊँची गद्दी पर और चार को गद्दी के नीचे बैठे हुए पाया और एक तरफ जिधर कोई मर्द न था अपनी और भूतनाथ की स्त्री को भी देखा। ये लोग आपस में धीरे-धीरे बातें कर रहे थे। इनकी बातें साफ समझ में नहीं आती थी, जो कुछ टूटी-फूटी बातें सुनने में आई उनका मतलब यही था कि सुरंग का दरवाजा बन्द करने में भूल हो जाने के सबब से भूतनाथ और देवीसिंह वहाँ आ गये, अतः अब ऐसी भूल न होनी चाहिए जिसमें यहाँ तक कोई आ सके इत्यादि। इसी बीच में एक और भी नकाबपोश वहाँ आ पहुँचा जो इस समय अपने नकाब को उलट कर सिर के ऊपर फेंके हुए था। इस आदमी की सूरत देखते ही देवीसिंह ने पहचान लिया कि भूतनाथ का लड़का और कमला का सगा तथा बड़ा भाई हरनामसिंह है। देवीसिंह ने अपनी जिन्दगी में हरनामसिंह को शायद एक या दो दफे किसी मौके पर देखा होगा, इसलिए उसको पहचान तो लिया मगर ताज्जुब के साथ-ही-साथ शक बना रहा, अस्तु इस शक को मिटाने के लिए देवीसिंह नीचे उतर आये और चारपाई को खुद पकड़ कर भूतनाथ को ऊपर चढ़ने और उस सूराख के अन्दर झाँकने के लिए कहा।

जब भूतनाथ चारपाई की बिनत के साहारे ऊपर चढ़ गया और उस सुराख में झाँककर देखा तो अपने लड़के हरनामसिंह को पहचान कर उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ और वह बड़े गौर से देखने तथा उन लोगों की बातें सुनने लगा।

पाठक, ताज्जुब नहीं कि आप इस हरनामसिंह को एक दम ही भूल गये हों क्यों कि जहाँ तक हमें याद है इसका नाम शायद चन्द्रकान्ता-सन्तति के दूसरे भाग के पाँचवें बयान में आकर रह गया और फिर कहीं इसका जिक्र तक नहीं आया। यह वह हरनामसिंह नहीं है जो मायारानी का ऐयार था, बल्कि यह कमला का बड़ा भाई तथा खास भूतनाथ का पहला और असल लड़का हरनामसिंह है। इसे बहुत दिनों के बाद आज यहाँ देखकर आप निःसन्देह आश्चर्य करेंगे, परन्तु खैर, अब हम यह लिखते हैं कि भूतनाथ ने सुराख के अन्दर झाँक कर क्या देखा।

भूतनाथ ने देखा कि उसका लड़का हरनामसिंह गद्दी के ऊपर बैठे दोनों नकाबपोशों के सामने खड़ा है और सदर दरवाजे की तरफ बड़े गौर से देख रहा है। उसी समय एक आदमी लपेटे हुए मोटे कपड़े का बहुत बड़ा लम्बा पुलिन्दा लिए हुए आ पहुँचा और इस पुलिन्दे को गद्दी पर रख के खड़ा हो हाथ जोड़कर भर्राई हुई आवाज में बोला, "कृपानाथ, बस मैं इसी का दावा भूतनाथ पर करूँगा।"

गद्दी के नीचे बैठे हुए दो आदमियों ने इशारा पाकर लपेटे हुए कपड़े को खोला