पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१८६

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के साथ बनी हुई थीं कि देखने वाला यह कह सकता था कि बस इससे ज्यादा कारीगरी और सफाई का काम मुसौवर कर ही नहीं सकता। छत पर हर तरह की चिड़ियों और उनके पीछे झपटते हुए बाज-बहरी इत्यादि शिकारी परिन्दों की तस्वीरें बनी हुई थी जो दीवारगीरों और कन्दीलों की तेज रोशनी के सबब बहुत साफ दिखाई दे रही थीं। जमीन पर साफ-सुथरा फर्श बिछा हुआ था और सामने की तरफ हाथ-भर ऊँची गद्दो पर दो काबपोश तथा गद्दी के नीचे और कई आदमी अदब के साथ बैठे हुए थे, मगर उनमें से ऐसा कोई भी न था जिसके चेहरे पर नकाब न हो।

देवीसिंह और भूतनाथ को उम्मीद थी कि हम उन्हीं दोनों नकाबपोशों को उसी ढंग की पोशाक में देखेंगे जिन्हें कई दफा देख चुके हैं मगर यहाँ उसके विपरीत देखने में आया। इस बात का निश्चय तो नहीं हो सकता था कि इस नकाब के अन्दर वही सुरत छिपी हुई है या कोई और लेकिन पोशाक और आवाज यही प्रकट करती थी कि वे दोनों कोई दूसरे ही हैं, मगर इसमें भी कोई शक नहीं कि इन दोनों की पोशाक उन नकाबपोशों से कहीं बढ़-चढ़ के थी जिन्हें भूतनाथ और देवीसिंह देख चुके थे।

जब देवीसिंह और भूतनाथ उन दोनों नकाबपोशों के सामने खड़े हुए तो उन दोनों में से एक ने अपने आदमियों से पूछा, "ये दोनों कौन हैं, जिन्हें गिरफ्तार कर लाए हो?"

एक––जी, इनमें से एक (हाथ का इशारा करके) राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयार देवीसिंह हैं और यह वही मशहूर भूतनाथ है जिसका मुकदमा आज-कल राजा वीरेन्द्रसिंह के दरबार में पेश है।

नकाबपोश––(ताज्जुब से) हाँ! अच्छा, तो ये दोनों यहाँ क्यों आये हैं? अपनी मर्जी से आये हैं या तुम लोग जबर्दस्ती गिरफ्तार कर लाए हो?

वही आदमी––इस हाते के अन्दर तो ये दोनों आदमी अपनी मर्जी से आये थे, मगर यहाँ हम लोग गिरफ्तार करके लाये हैं।

नकाबपोश––(कुछ कड़ी आवाज में) गिरफ्तार करने की जरूरत क्यों पड़ी? किस तरह मालूम हुआ कि ये दोनों यहाँ बदनीयती के साथ आये हैं? क्या इन दोनों ने तुम लोगों से कुछ हुज्जत की थी?

वही आदमी––जी, हुज्जत तो किसी से न की मगर छिप-छिपकर आने और पेड़ की आड़ में खड़े होकर ताक-झाँक करने से मालूम हुआ कि इन दोनों की नीयत अच्छी नहीं है, इसीलिए गिरफ्तार कर लिए गये।

नकाबपोश––इतने बड़े प्रतापी राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐसे नामी ऐयार के साथ केवल इतनी बात पर इस तरह का बर्ताव करना तुम लोगों को उचित न था, कदाचित् ये हम लोगों से मिलने के लिए आए हों। हाँ, अगर केवल भूतनाथ के साथ ऐसा बर्ताव होता तो ज्यादा रंज की बात न थी।

यद्यपि नकाबपोश की आखिरी बात भूतनाथ को कुछ बुरी मालूम हुई, मगर कर ही क्या सकता था? साथ ही इसके यह भी देख रहा था कि नकाबपोश भलमनसी और सभ्यता के साथ बातें कर रहा है, जिसकी उम्मीद यहाँ आने के पहले कदापि न थी।