चन्द्रकान्ता सन्तति
बीसवाँ भाग
1
भूतनाथ और देवीसिंह को कई आदमियों ने पीछे से पकड़ कर अपने काबू में कर लिया और उसी समय एक आदमी ने किसी विचित्र भाषा में पुकार कर कुछ कहा, जिसे सुनते ही वे दोनों औरतें अर्थात् चम्पा तथा भूतनाथ की स्त्री चिराग फेंक-फेंककर पीछे की ओर लौट गईं, अंधकार के कारण कुछ मालूम न हुआ कि वे दोनों कहाँ गईं, हाँ भूतनाथ और देवीसिंह को इतना मालूम हो गया कि उन्हें गिरफ्तार करने वाले भी सब नकाबपोश हैं। भूतनाथ की तरह देवीसिंह भी सूरत बदल कर अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए थे।
गिरफ्तार हो जाने के बाद भूतनाथ और देवीसिंह दोनों एक साथ कर दिये गये और दोनों ही को लिए हुए वे सब बीच वाले बंगले की तरफ रवाना हुए। यद्यपि अंधकार के अतिरिक्त सूरत बदलने और नकाब डाले रहने के सबब एक का दूसरे को पहचानना कठिन था तथापि अन्दाज ही से एक को दूसरे ने जान लिया और शरमिन्दगी के साथ धीरे-धीरे उस बँगले की तरफ जाने लगे। जब बंगले के पास पहुँचे तो आगे वाले दालान में जहाँ दो चिरागों की रोशनी थी, तीन आदमियों को हाथ में नंगी तलवारें लिए पहरा देते देखा। वहाँ पहुँचने पर हमारे दोनों ऐयारों को मालूम हुआ कि उन्हें गिरफ्तार करने वाले गिनती में आठ से ज्यादा नहीं हैं। उस समय देवीसिंह और भूतनाथ के दिल में थोड़ी देर के लिए यह बात पैदा हुई कि केवल आठ आदमियों से हमें गिरफ्तार हो जाना उचित न था और अगर हम चाहते तो इन लोगों से अपने को बचा ही लेते, मगर उन दोनों का यह विचार तुरन्त ही जाता रहा, जब उन्होंने कुछ कमोबेश यह सोचा कि अगर हम इन लोगों से अपने को बचा लेते तो क्या होता क्योंकि यहाँ से निकल कर भाग जाना कठिन था और अगर भाग भी जाते तो जिस काम के लिए आये, उससे हाथ धो बैठते, अतः जो होगा देखा जायेगा।
इस दालान में अन्दर जाने के लिए दरवाजा था और उसके आगे लाल रंग का रेशमी पर्दा लटक रहा था। दीवार-छत इत्यादि सब रंगीन बने हुए थे और उन पर बनी