पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१८३

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छत इतनी ऊँची जरूर थी कि आदमी उस चबूतरे के ऊपर चढ़-कर बखूबी खड़ा हो सकता था, अतः भूतनाथ उस चबूतरे के ऊपर चढ़ गया और जब आगे की तरफ देखा तो नीचे उतरने के लिए सीढ़ियाँ नजर आईं।

भूतनाथ सीढ़ियों की राह नीचे उतर गया और अन्त में उसने एक छोटे से दरवाजे का निशान देखा, जिसमें किवाड़-पल्ले इत्यादि की कोई जगह न थी, केवल बाएँ दाहिने और नीचे की तरफ चौखट का निशान था। दरवाजे के अन्दर पैर रखने के बाद सुरंग की तरह रास्ता दिखाई दिया, जिसे गौर से अच्छी तरह देखने के बाद भूतनाथ ने मोमबत्ती बुझा दी और टटोलता हुआ आगे की तरफ बढ़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद सुरंग खतम हुई और रोशनी दिखाई दी। यह हल्की और नाम मात्र की रोशनी किसी चिराग या मशाल की न थी बल्कि आसमान पर चमकते हुए तारों की थी क्योंकि वहाँ से आसमान तथा सामने की तरफ मैदान का एक छोटा-सा टुकड़ा दिखाई दे रहा था।

यह मैदान आठ या दस बीघे से ज्यादा न होगा। बीच में एक छोटा-सा बंगला था, उसके आगे वाले दालान में कई आदमी बैठे हुए दिखाई देते थे तथा चारों तरफ बड़े-बड़े जंगली पेड़ों की भी कमी न थी। सन्नाटा देखकर भूतनाथ सुरंग के पार निकल गया और एक पेड़ की आड़ देकर इस खयाल में खड़ा हो गया कि मौका मिलने पर आगे की तरफ बढ़ेंगे। थोड़े ही देर में भूतनाथ को मालूम हो गया कि उसके पास ही एक पेड़ की आड़ में कोई दूसरा आदमी भी खड़ा है। यह दूसरा आदमी वास्तव में देवीसिंह था जो भूतनाथ के पीछे ही पीछे थोड़ी देर बाद यहां आकर पेड़ की आड़ में खड़ा हो गया था और वह भी सूरत बदलने के बाद अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए था इसलिए एक को दूसरे का पहचानना कठिन था।

थोड़ी ही देर बाद दो औरतें अपने-अपने हाथों में चिराग लिए बँगले के अन्दर से निकली और उसी तरफ रवाना हुई जिधर पेड़ की आड़ में भूतनाथ और देवीसिंह खड़े हुए थे। एक तो भूतनाथ और देवीसिंह का दिल इस खयाल से खुटके में था ही कि मेरे पास ही एक पेड़ की आड़ में कोई दूसरा भी खड़ा है, दूसरे इन दो औरतों को अपनी तरफ आते देख और भी घबड़ाये, मगर कर ही क्या सकते थे, क्योंकि इस समय जो कुछ ताज्जुब की बात उन दोनों ने देखी उसे देखकर भी चुप रह जाना उन दोनों की सामर्थ्य से बाहर था अर्थात् कुछ पास आने पर मालूम हो गया कि उन दोनों ही औरतों में से एक तो भूतनाथ की स्त्री है जिसे वह लामाघाटी में छोड़ आया था और दूसरी चम्पा।

भूतनाथ आगे बढ़ना ही चाहता था कि पीछे से कई आदमियों ने आकर उसे पकड़ लिया और उसी की तरह देवीसिंह भी बेकाबू कर दिये गये।