पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१८२

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चला गया, मगर जब देखा कि वे दोनों बेफिक्र नहीं हैं बल्कि चौकन्ने होकर चारों तरफ खास करके मुझे गौर से देखते जाते हैं, तब मैं भी तरह देकर हट गया। दूसरे दिन हम लोग कई आदमी एक-दूसरे से अलग दूर-दूर बैठ गये और आखिर मेरे साथी ने उन्हें ठिकाने तक पहुँचा कर पता लगा ही लिया कि ये दोनों इस खोह के अन्दर रहते हैं। उसके बाद हम लोगों ने निश्चय कर लिया और उसी खोह के पास छिपकर मैंने स्वयं कई दफे उन लोगों को उसी के अन्दर आते-जाते देखा और यह भी जान लिया कि वे लोग दस-बारह आदमी से कम नहीं हैं।

भूतनाथ––मेरा भी यही खयाल था कि वे लोग दस-बारह से कम न होंगे, खैर जो होगा देखा जायेगा, अब मैं संध्या हो जाने पर उस खोह के अन्दर जाऊँगा, तुम लोग हमारी हिफाजत का खयाल रखना और इसके अतिरिक्त इस बात का भी पता लगाना कि जिस तरह मैं उनकी टोह में लगा हुआ हूँ, उसी तरह और कोई भी उनका पीछा करता है या नहीं।

आदमी––जो आज्ञा।

भूतनाथ––हाँ, एक बात और पूछना है। तुम लोगों ने जिन दस-बारह आदमियों को खोह के अन्दर आते-जाते देखा है वे सभी अपने चेहरे पर नकाब रखते हैं या सिर्फ दो-चार?

आदमी––जी, हम लोगों ने जितने भी आदमियों को देखा सभी को नकाबपोश पाया।

भूतनाथ––अच्छा, तो तुम अब जाओ और अपने साथियों को मेरा हुक्म सुना कर होशियार कर दो।

इतना कहकर भूतनाथ खड़ा हो गया और अपने दोनों आदमियों को बिदा करने के बाद पश्चिम की तरफ रवाना हुआ। इस समय भूतनाथ अपनी असली सुरत में न था बल्कि सूरत बदल कर अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए था।

यहाँ से लगभग कोस भर की दूरी पर उस खोह का मुहाना था, जिसका पता भूतनाथ के आदमियों ने दिया था। संध्या होने तक भूतनाथ इधर-उधर जंगल में घूमता रहा और जब अँधेरा हो गया, तब उस खोह के मुहाने पर पहुँचकर चारों तरफ देखने लगा।

यह स्थान एक घने और भयानक जंगल में था। छोटे पहाड़ के निचले हिस्से में दो-तीन आदमियों के बैठने लायक एक गुफा थी और आगे से पत्थरों के बड़े-बड़े ढोकों ने उसका रास्ता रोक रखा था। उसके नीचे की तरफ पानी का एक छोटा-सा नाला बहता जिसमें इस समय कम, मगर साफ पानी बह रहा था और उस नाले के दोनों तरफ भी पेड़ों की बहुतायत थी। भूतनाथ ने सन्नाटा पाकर उस गुफा के अन्दर पैर रखा और सुरंग की तरह रास्ता पाकर टटोलता हुआ थोड़ी दूर तक बेखटके चला गया। आगे जाकर जब रास्ता खराब मालूम हुआ, तब उसने बटुए में से मोमबत्ती निकाल कर जलाई और चारों तरफ देखने लगा। सामने का रास्ता बिल्कुल बन्द पाया अर्थात् सामने की तरफ पत्थर की दीवार थी, जो एक चबूतरे की तरह मालूम पड़ती थी, मगर वहाँ की