नहीं? और इसी तरह से भूतनाथ भी जब जानता था कि बलभद्रसिंह कौन और कहाँ है तो उसने इस बात को इतने दिनों तक छिपा क्यों रक्खा? इसका जवाब मैं इस तरह देता हूँ कि अगर भूतनाथ कमलिनी का ऐयार बना हुआ न होता तो यह नकली बलभद्रसिंह अर्थात् जैपाल, जिसे भूतनाथ मरा हुआ समझे बैठा था, कभी का प्रकट हो चुका होता, मगर भूतनाथ का डर इसे हद से ज्यादा था और यह चाहता था कि कोई ऐसा जरिया हाथ लग जाय जिससे भूतनाथ इसके सामने कभी भी सिर उठाने लायक न रहे, और तब यह प्रकट होकर अपने को बलभद्रसिंह के नाम से मशहूर करे। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात् वह छोटी सन्दूकड़ी, जिसकी तरफ देखने की भी ताकत भूतनाथ में नहीं है, इसके हाथ लग गई और वह कागज का मुट्ठा भी इसे मिल गया जो भूतनाथ के हाथ का लिखा हुआ था। अपनी इस बात के सबूत में मैं इस (हाथ की चिट्ठी दिखाकर) चिट्ठी को, जो आज के बहुत दिन पहले की लिखी हुई है, पढ़कर सुनाऊँगा!"
इतना कहकर उसने चिट्ठी पढ़ना शुरू किया जिसमें यह लिखा हुआ था––"प्यारी बेगम,
वह सन्दूकड़ी तो मेरे हाथ लग गई जो भूतनाथ को बस में करने के लिए जादू का असर रखती है, मगर भूतनाथ तथा उसके आदमी बेतरह मेरे पीछे पड़े हुए हैं। ताज्जुब नहीं कि मैं गिरफ्तार हो जाऊँ, इसलिए यह सन्दूकड़ी तुम्हारे पास भेजता हूँ। तुम इसे हिफाजत के साथ रखना। मैं भूतनाथ को धोखा देने का बन्दोबस्त कर रहा हूँ। अगर मैं अपना काम पूरा कर सका तो निःसन्देह भूतनाथ को विश्वास हो जायगा कि जयपालसिंह मर गया। उस समय मैं तुम्हारे पास आकर अपनी खुशी का तमाशा दिखाऊँगा। मुझे इस बात का पता भी लग चुका है कि वह कागज की गठरी उसकी स्त्री के सन्दूक में है जिसका जिक्र मैं कई दफे तुमसे कर चुका हूँ और जिसके मिले बिना मैं अपने को बलभद्रसिंह बनाकर प्रकट नहीं कर सकता।
––वही जयपाल।"
पढ़ने के बाद नकाबपोश ने वह चिट्ठी गोपालसिंह के आगे फेंक दी और बेगम की तरफ देख के पूछा, "तुझे याद है कि यह चिट्ठी किस महीने में जयपाल ने तेरे पास भेजी थी?"
बेगम––बहुत दिन की बात हो गई। इसलिए मुझे महीना और दिन तो याद नहीं है।
नकाबपोश––(जयपाल से) क्या तुझे याद है कि यह चिट्ठी तूने किस महीने में लिखी थी?
जयपालसिंह––यह चिट्ठी मेरे हाथ की लिखी हुई होती तो मैं तेरी बात का जवाब देता।
नकाबपोश––तो यह बेगम क्या कह रही है?
जयपालसिंह––तू ही जाने कि तेरी बेगम क्या कह रही है? मैं तो उसे पहचानता भी नहीं।
इतना सुनते ही नकाबपोश को गुस्सा चढ़ आया। उसने अपने चेहरे से नकाब हटाकर गुस्से-भरी निगाहों से जयपाल की तरफ देखा, जिसकी ताज्जुब-भरी निगाहें