निगाहों से देख रहे हैं और नहीं जानते कि कौन हैं, कहाँ के रहने वाले हैं, या इन मामलों से इन्हें क्या सम्बन्ध है जिसके लिए इन दोनों ने यहाँ आने और मुकदमे में शरीक होने का कष्ट स्वीकार किया है। फिर भी जब तक ये दोनों अपने को प्रकट न करें हम लोगों को इनका हाल जानने के लिए उद्योग न करना चाहिए और देखना चाहिए कि इनकी कार्रवाइयों और बात का असर कम्बख्त मुजरिमों पर कैसा पड़ता है।"
यह कहकर गोपालसिंह ने वह अँगूठी, चिट्ठियाँ और छोटी किताब नकाबपोश के आगे रख दी।
इस दरबार-आम वाले मकान में भी ऐसी जगह बनी हुई थी जहाँ से रानी चन्द्रकान्ता और किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी वगैरह भी यहाँ की कैफियत देख-सुन सकती थी, इसलिए समझ रखना चाहिए कि वे सब भी दरबार के मामले को देख-सुन रही हैं।
उन दोनों में से एक नकाबपोश ने भूतनाथ के पेश किए हुए कागजों में से एक कागज उठा लिया और खड़े होकर इस तरह कहना शुरू किया––
"निःसन्देह आप लोग हम दोनों को ताज्जुब की निगाह से देखते होंगे और यह भी जानने की इच्छा रखते होंगे कि हम लोग कौन हैं, और कहाँ के रहनेवाले हैं, मगर अफसोस है कि इस समय इस बारे में हम इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकते कि हम लोग ईश्वर के दूत हैं और इन दुष्टों के अच्छे-बुरे कर्मों को अच्छी तरह जानते हैं। यह जैपाल अर्थात् नकली बलभद्रसिंह चाहता है कि अपने साथ भूतनाथ को भी ले डूबे, मगर इसे समझ रखना चाहिए कि भूतनाथ हजार बुरा होने पर भी इज्जत और कदर की निगाह से देखे जाने के लायक है। अगर भूतनाथ न होता तो यह जैपाल इस समय असली बलभद्रसिंह बनकर न मालूम और भी कैसे-कैसे अनर्थ करता और असली बलभद्रसिंह की जान न जाने किस तकलीफ के साथ निकलती। अगर भूतनाथ न होता तो आज का यह आलीशान दरबार भी हम लोगों के लिए न होता और राजा गोपालसिंह भी इस तरह बैठे हुए दिखाई न देते, क्योंकि भूतनाथ की ही बदौलत दारोगा की गुप्त कमेटी का अन्त हुआ और इसी की बदौलत कमलिनी भी मायारानी के साथ मुकाबला करने लायक हुई। अगर भूतनाथ ने दो काम बुरे किये हैं तो दस काम अच्छे भी किए हैं, जो आप लोगों से छिपे नहीं हैं। भूतनाथ के अनूठे कामों का बदला यह नहीं हो सकता कि उसे किसी तरह की सजा मिले बल्कि यही हो सकता है कि उसे मुंहमांगा इनाम मिले, आशा है कि मेरी इस बात को महाराज खुले दिल से स्वीकार भी करेंगे।"
इतना कहकर नकाबपोश चुप हो गया और महाराज की तरफ देखने लगा। महाराज का इशारा पाकर तेजसिंह ने कहा, "महाराज आपकी इस बात को प्रसन्नता के साथ स्वीकार करते हैं।"
इतना सुनते ही भूतनाथ ने खड़े होकर सलाम किया और नकाबपोश ने भी सलाम करके पुनः इस तरह कहना शुरू किया––
"बहुतों को ताज्जुब होगा कि जैपाल जब बलभद्रसिंह बन ही चुका था तो इतने दिनों तक कहाँ और क्योंकर छिपा रहा, लक्ष्मीदेवी या कमलिनी से मिला क्यों