पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१७

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लेकर उस घाटी की तरफ जायगी, उसमें जहर मिला देना तो तेरे लिए कोई मुश्किल न होगा और इस तरह एक साथ ही कई दुश्मनों को सफाई हो जायगी, मगर इसमें भी मुझे एक बात का खुटका होता है।

लीला––वह क्या?

मायारानी––जिस वक्त से मुझे यह मालूम हुआ है कि गोपालसिंह ही ने कृष्ण जिन्न का रूप धारण किया था, उस वक्त से मैं उसे बहुत ही चालाक और धूर्त ऐयार समझने लग गई हूँ। ताज्जुब नहीं कि वह तेरा भेद मालूम कर ले या वे खाने-पीने की चीजें, जो उसने मँगाई हैं, उनमें से स्वयं कुछ भी न खाय।

लीला––यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है। मेरा दिल भी यही कहता है कि उसने खाने-पीने का बहुत बड़ा ध्यान रखा होगा, सिवाय अपने हाथ के और किसी का बनाया कदापि न खाता होगा, क्योंकि वह तकलीफें उठा चुका है, अब उसे धोखा देना जरा टेढ़ी खीर है, मगर फिर भी तुम देखोगी कि इस अँगूठी की बदौलत मैं उसे कैसा धोखा देती हूँ और किस तरह अपने पंजे में फँसाती हूँ।

मायारानी––खैर, जो मुनासिब समझे, मगर इसमें तो कोई शक नहीं कि रामदीन छोकरे की सूरत बनाकर और घोड़ी पर सवार होकर तू दीवान साहब के पास जायगी।

लीला––मैं जाऊँगी और जरूर जाऊँगी। नहीं तो इस अँगूठी और चिट्ठी के मिलने का फायदा ही क्या हुआ! बस, तुम्हें किसी अच्छे ठिकाने पर रख देने भर की देर है।

मायारानी––मगर मैं एक बात और कहना चाहती हूँ।

लीला––वह क्या!

मायारानी––मैं इस समय बिल्कुल कंगाल हो रही हूँ और ऐसे मौके पर रुपये की बड़ी जरूरत है। इसलिए मैं चाहती हूँ कि दीवान साहब के पास तुझे न भेजकर खुद ही जाऊँ और किसी तरह तिलिस्मी बाग में घुसकर कुछ जवाहरात और सोना जहाँ तक ला सकूँ ले आऊँ, क्योंकि मुझे वहाँ के खजाने का हाल मालूम है और यह काम तेरे किये नहीं हो सकता, जब मुझे रुपये की मदद मिल जायगी, तो कुछ सिपाहियों का भी बन्दोबस्त कर सकूँगी और...

लीला––यह सब कुछ ठीक है, मगर मैं तुम्हें दीवान साहब के पास कदापि न जाने दूँगी। कौन ठिकाना कही तुम गिरफ्तार हो जाओ तो फिर मेरे किए कुछ भी न हो सकेगा। बाकी रही रुपये-पैसे वाली बात, सो इसके लिए तरद्दुद करना वृथा है, क्या यह नहीं हो सकता कि जब मैं दीवान साहब के पास जाऊँ और सवारी इत्यादि तथा खाने-पीने की चीजें लूँ, तो एक रथ पर थोड़ी सी अशर्फियाँ और कुछ जवाहिरात भी रख देने के लिए कहूँ? क्या वह इस अँगूठी के प्रताप से मेरी बात न मानेगा? और अगर अशफियों और जवाहरात का बन्दोबस्त कर देगा तो क्या मैं उन्हें रास्ते में से गुम नहीं कर सकती? इसे भी जाने दो, अगर तुम पता-ठिकाना ठीक-ठीक बताओ तो क्या मैं तिलिस्मी बाग में जाकर जवाहरात और अशफियों को कहीं निकाल ला सकती?