पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१६०

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नुसार पत्र लिख दिया, तब उसने बेहोशी की दवा सुँघाकर मुझे बेहोश किया और उसके बाद जब मेरी आँख खुली तो मैंने अपने को आपके सामने पाया।

भूतनाथ––आपको यह नहीं मालूम हुआ कि उस औरत का नाम क्या था?

बलभद्रसिंह––मैंने कई दफे नाम पूछा मगर उसने न बताया।

मालूम होता है कि बलभद्रसिंह ने अपना जो कुछ बयान किया उस पर हमारे राजा साहब या ऐयारों को विश्वास न हुआ मगर उसकी खातिर से तेजसिंह ने कह दिया कि "ठीक है, ऐसा ही होगा।"

बलभद्रसिंह और भूतनाथ को राजा साहब बिदा किया ही चाहते थे कि उसी समय इन्द्रदेव के आने की इत्तिला मिली। आज्ञानुसार इन्द्रदेव हाजिर हुए और सभी को सलाम करने के बाद इशारा पाकर तेजसिंह की बगल में बैठ गए।

इन्द्रदेव के आने से हमारे राजा साहब और ऐयारों को खुशी हुई और इसीलिए पन्नालाल, रामनारायण और पं॰ बद्रीनाथ वगैरह हमारे बाकी के ऐयार लोग भी जो इस समय यहाँ हाजिर और इस इमारत के बाहरी तरफ टिके हुए थे, इन्द्रदेव के साथ-ही-साथ राजा साहब के पास आ पहुँचे क्योंकि इन्द्रदेव, बलभद्रसिंह और भूतनाथ का अनूठा हाल जानने के लिए सभी बेचैन हो रहे थे और खास करके भूतनाथ के मुकदमे से तो सभी को दिलचस्पी थी। इसके अतिरितत इन्द्रदेव अपने साथ दो कैदी अर्थात् नकली बलभद्रसिंह और नागर को भी लाए थे और बोले थे कि "काशिराज के भेजे हुए और भी कई कैदी थोड़ी देर में हाजिर होना चाहते हैं" जिस कारण हमारे ऐयारों की दिलचस्पी और भी बढ़ रही थी।

सुरेन्द्रसिंह––तुम्हारे आने से हम लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई। इन्द्रजीत और गोपालसिंह तुम्हारी बड़ी प्रशंसा करते हैं और वास्तव में तुमने जो कुछ किया है, वह प्रशंसा के योग्य भी है।

इन्द्रदेव––(हाथ जोड़कर) मैं तो किसी योग्य भी नहीं हूँ और न कोई काम हीं मेरे हाथ में ऐसा निकला जिससे महाराज के गुलाम के बराबर भी अपने को समझने की प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकूँ––हाँ दुर्दैव ने जो कुछ मेरे साथ बर्ताव किया उसके सबब से मुझ अभागे को जो कष्ट भोगने, पड़े उन्हें सुनकर दयालु महाराज को मुझ पर दया आवश्य आई होगी।

सुरेन्द्रसिंह––हम लोग ईश्वर को धन्यवाद देते हैं जिसकी कृपा से एक विचित्र और अनूठी घटना के साथ तुम्हारी स्त्री और लड़की का पता लग गया और तुमने उन दोनों को जीती-जागती देखा।

इन्द्रदेव––यह सब-कुछ आपके और कुमारों के चरणों की बदौलत हुआ। वास्तव में तो मैं भाड़े की जिन्दगी बिताता हुआ दुनिया से विरक्त ही हो चुका था। अब भी वे दोनों आप लोगों के चरणों की धूल आँखों में लगा लेंगी, तभी मेरी प्रसन्नता का कारण होंगी। आशा है कि आज ही या कल तक राजा गोपाल सिंह भी उन दोनों तथा किशोरी, कामिनी लक्ष्मीदेवी, कमलिनी, लाड़िली और कमला इत्यादि को लेकर यहाँ आवें और महाराज के चरणों का दर्शन करेंगे।