पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१५९

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तैयार हूँ।

तेजसिंह––अच्छी बात है, हम लोग भी सुनने के लिए तैयार हैं और आप ही का इन्तजार कर रहे थे।

सभी का ध्यान बलभद्रसिंह की तरफ खिच गया और बलभद्रसिंह ने अपने गायब होने का हाल इस तरह कहना शुरू किया––

"इस बात की तो मुझे कुछ भी खबर नहीं कि मुझे कौन ले गया और क्यों कर ले गया। उस दिन मैं भूतनाथ के पास ही एक चारपाई पर सो रहा था और जब मेरी आँख खुली तो मैंने अपने को एक हरे-भरे और खूबसूरत बाग में पाया। उस समय मैं बिल्कुल मजबूर था अर्थात् मेरे हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ी पड़ी हुई थी और एक औरत नंगी तलवार लिए मेरे सामने खड़ी थी। मैंने सोचा कि अब मेरी जान नहीं बचती और मेरे भाग्य में कैदी बनकर जान देना ही बदा है। बहुत-सी बातें सोच-विचार के मैंने उस औरत से पूछा कि 'तू कौन है और मैं यहाँ क्योंकर पहुँचा हूँ?" जिसके जवाब में उस औरत ने कहा कि 'तुझे मैं यहाँ ले आई हूँ और इस समय तू मेरा कैदी है। मैं जिस मुसीबत में फँसी हुई हूँ उससे छुटकारा पाने के लिए इसके सिवाय और कोई तरकीब न सूझी कि तुझे अपने कब्जे में करके अपने छुटकारे की सूरत निकालूँ, क्योंकि मेरा दुश्मन तेरे ही कब्जे में है। अगर तू उसे समझा-बुझाकर राह पर ले आवेगा तो मेरे साथ-साथ तेरी जान भी बच जायगी।'

उस औरत की बातें सुनकर मुझे बड़ा ही ताज्जुब हुआ और मैंने उससे पूछा, "वह कौन है जो तेरा दुश्मन है और है और मेरे कब्जे में है?"

औरत––तेरी बेटी कमलिनी मेरे साथ दुश्मनी कर रही है।

मैं––क्यों?

औरत––उसकी खुशी, मैंने तो उसका कुछ नुकसान नहीं किया।

मैं––आखिर दुश्मनी का कोई सबब भी तो होगा?

औरत––अगर कोई सबब है तो केवल इतना ही कि वह भूतनाथ का पक्ष करती है और मुझे भूतनाथ का दुश्मन समझती है। मगर मैं कसम खाकर कहती हूँ कि मुझे भूतनाथ से जरा भी रंज नहीं है बल्कि मैं भूतनाथ को अपना मददगार और भाई समझती हूँ। और मुझे भूतनाथ से किसी तरह का रंज होता तो मैं तुझे गिरफ्तार करके न लाती बल्कि भूतनाथ ही को ले आती, क्योंकि जिस तरह मैं तुझे उठा लाई हूँ उसी तरह भूतनाथ को भी उठा ला सकता थी। खैर, अब मैं चाहती हूँ कि तू एक चिट्ठी कमलिनी के नाम की लिख दे कि वह मेरे साथ दुश्मनी का बर्ताव न करे। अगर तू अपनी कसम दे के यह बात कमलिनी को लिख देगा तो वह जरूर मान जायगी।

मैंने कई तरह से, उलट-फेर के, कई तरह की बातें उस औरत पूछी मगर साफ-साफ न मालूम हुआ कि कमलिनी उसके साथ दुश्मनी क्यों करती है। इसके अतिरिक्त मुझे इस बात का भी निश्चय हो गया कि जब तक मैं कमलिनी के नाम की चिट्ठी न लिख दूँगा तब तक मेरी जान को छुट्टी न मिलेगी। चिट्ठी लिखने से इनकार करने के कारण कई दिनों तक मैं उसका कैदी बना रहा, आखिर लाचार हो मैंने उसकी इच्छा-