पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१५०

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नहीं! मेरे सामने ही मुझे झूठा और दोषी बना रही है और अपने सहायक बरदेबू को निर्दोष बनाना चाहती है!

इतना कहकर इन्दिरा कुछ देर के लिए रुक गई और थोड़ा-सा जल पीने के बाद बोली––

"जो कुछ मैंने कहा था उस पर मनोरमा को विश्वास हो गया।"

इन्द्रजीतसिंह––विश्वास होना ही चाहिए, इसमें कोई शक नहीं कि तूने जो कुछ मनोरमा से कहा उसका एक-एक अक्षर चालाकी और होशियारी से भरा हुआ था।

कमला––निःसन्देह, अच्छा तब क्या हुआ?

इन्दिरा––नानू ने मुझे झूठा बनाने के लिए बहुत जोर मारा, मगर कुछ कर न सका क्योंकि मनोरमा के दिल पर मेरी बातों का पूरा असर पड़ चुका था। उस पुर्जे के टुकड़ों ने उसी को दोषी ठहराया जो उसने बरदेबू को दोषी ठहराने के लिए चुन रखे थे, क्योंकि बरदेबू ने यह पुर्जा अक्षर बिगाड़ कर ऐसे ढंग से लिखा था कि उसकी कलम का लिखा हुआ कोई कह नहीं सकता था। मनोरमा ने इशारे से मुझे हट जाने के लिए कहा और मैं उठकर कमरे के अन्दर चली गई। थोड़ी देर के बाद जब मैं उसके बुलाने पर पुनः बाहर गई तो वहाँ मनोरमा को अकेले बैठे हुए पाया। उसके पास वाली कुर्सी पर बैठकर मैंने पूछा कि 'माँ, नानू कहाँ गया?' इसके जवाब में मनोरमा ने कहा कि 'बेटी, नानू को मैंने कैदखाने में भेज दिया। ये लोग उस कम्बख्त दारोगा के साथी और बड़े ही शैतान हैं इसलिए किसी-न-किसी तरह इन लोगों को दोषी ठहराकर जहन्नुम को भेज देना ही उचित है। अब मैं उस दारोगा से बदला लेने की धुन में लगी हुई हूँ, इसी काम के लिए मैं बाहर गयी थी और इस समय पुनः जाने के लिए तैयार हूँ, केवल तुझे देखने के लिए चली आयी थी, तू बेफिक्र होकर यहाँ रह, आशा है कि कल शाम तक मैं अवश्य लौट आऊँगी। जब तक मैं उस कम्बख्त से बदला न ले लूँ और तेरे बाप को कैद से छुड़ा न लूँ, तब तक एक घड़ी के लिए भी अपना समय नष्ट करना नहीं चाहती। बरदेबू को अच्छी तरह समझा जाऊँगी, वह तुझे किसी तरह की तकलीफ न होने देगा।"

इन बातों को सुनकर मैं बहुत खुश हुई और सोचने लगी कि यह कम्बख्त यहाँ से जितना शीघ्र चली जाये, उत्तम है, क्योंकि मुझे हर तरह से निश्चय हो चुका था कि यह मेरी माँ नहीं है और यहाँ से यकायक निकल जाना भी कठिन है। साथ ही इसके मेरा दिल कह रहा था कि मेरा बाप कैद नहीं हुआ, यह सब मनोरमा की बनावट है जो मेरे बाप का कैद होना बता रही है।

मनोरमा चली गई, मगर उसने शायद ठीक मुझको यह न बताया कि नानू के साथ क्या सलूक किया या अब वह कहाँ है, फिर भी मनोरमा के चले जाने के बाद मैंने नानू को न देखा और न किसी लौंडी या नौकर ही ने उसके बारे में मुझसे कुछ कहा।

अबकी बार मनोरमा के चले जाने के बाद मुझ पर उतना सख्त पहरा नहीं रहा जितना नानू ने बढ़ा दिया था, मगर कोई आदमी मेरी तरफ से गाफिल भी न था।

उसी दिन आधी रात के समय जब मैं कमरे में चारपाई पर पड़ी हुई नींद नहीं आने के कारण तरह-तरह के मनसूबे बाँध रही थी, यकायक बरदेबू मेरे सामने आकर