पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१४

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लीला––चाहे तुम्हारे सारे नौकर-चाकर तुम्हारे अहसानों को भूल जायें और तुम्हारे नमक का खयाल न करें मगर मैं कब ऐसा कर सकती हूँ! मुझे दुनिया में तुम्हारे बिना चैन कब पड़ सकता है, जब तक तुम्हें कैद से छुड़ा न लिया, अन्न का दाना मुँह में न डाला बल्कि अभी तक जंगली बेर और मकोय पर ही गुजारा कर रही हूँ!

मायारानी––शाबाश! मैं तुम्हारे इस अहसान को जन्म भर नहीं भूल सकती, जिस तरह आप रहूँगी उसी तरह तुम्हें भी रक्खूँगी। यह जान तुमने बचाई है इसलिए जब तक इस दुनिया में रहूँगी इस जान का मालिक तुम्हीं को समझेंगी।

लीला––(तिलिस्मी तमंचा और गोली मायारानी के सामने रख कर) यह अपनी अमानत आप लीजिए और अब इसे अपने पास रखिये, इसने बड़ा काम किया।

मायारानी––(तमंचा उठा कर और थोड़ी-सी गोलियाँ लीला को देकर) इन गोलियों को अपने पास रक्खो, बिना तमंचे के भी ये बड़ा काम देंगी। जिस तरफ फेंक दोगी या जहाँ जमीन पर पटकोगी उसी जगह ये अपना गुण दिखलावेंगी।

लीला––(गोलियाँ रख कर) बेशक ये बड़े वक्त पर काम देती हैं। अच्छा, यह कहिये कि अब हम लोगों को क्या करना और कहाँ जाना चाहिए?

मायारानी––इसका जवाब भी तुम्हीं बहुत अच्छा दे सकती हो, मैं केवल इतना ही कहूँगी कि गोपालसिंह और कमलिनी को इस दुनिया से उठा देना सबसे पहला और जरूरी काम समझना चाहिए। किशोरी, कामिनी और कमला को मारकर मनोरमा ने कुछ भी न किया, उतनी ही मेहनत अगर गोपालसिंह और कमलिनी को मारने के लिए करती तो इस समय मैं पुनः तिलिस्म की रानी कहलाने लायक हो सकती थी।

लीला––ठीक है मगर मुझे... (कुछ रुक कर) देखो तो, वह कौन सवार जा रहा है! मुझे तो उस छोकरे रामदीन की छटा मालूम पड़ती है। यह पंचकल्यान मुश्की घोड़ी भी अपने ही अस्तबल की मालूम पड़ती है बल्कि...

मायारानी––(गौर से देखकर) यह वही घोड़ी है जिस पर मैं सवार हुआ करती थी, और बेशक वह सवार भी रामदीन ही है। उसे पकड़ो तो गोपालसिंह का ठीक हाल मालूम हो।

लीला––पकड़ना तो कोई कठिन काम नहीं है क्योंकि तिलिस्मी तमंचा तुम्हारे पास मौजूद है, मगर यह कम्बख्त कुछ बताने वाला नहीं है।

मायारानी––खैर जो हो, मैं गोली चलाती हूँ।

इतना कहकर मायारानी ने फुर्ती से तिलिस्मी तमंचे में गोली भर कर सवार की तरफ चलाई। गोली घोड़ी को गर्दन में लगी और तुरन्त फट गई, घोड़ी भड़की और उछली-कूदी मगर गोली से निकले हुए बेहोशी के धुएँ ने अपना असर करने में उससे भी ज्यादा तेजी और फुर्ती दिखाई। घोड़ी और सवार दोनों ही पर बेहोशी का असर हो गया। सवार जमीन पर गिर पड़ा और दो कदम आगे बढ़कर घोड़ी भी लेट गई। मायारानी और लीला ने दूर से यह तमाशा देखा और दौड़ती हुईं सवार के पास पहुँची।

लीला––पहसे इसकी मुश्कें बाँधनी चाहिए।