पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१३९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
139
 

ही-साथ महल में जाकर अपनी माता से मिले और संक्षेप में सब हाल कहकर बिदा हुए तब चन्द्रकान्ता के पास गए और उसी जगह चपला तथा चम्पा से मिलकर देर तक अपने सफर का दिलचस्प हाल कहते रहे।

दूसरे दिन राजा वीरेन्द्रसिंह अपने पिता के पास एकान्त में बैठे हुए बातों में राय ले रहे थे जब जमानिया से आये हुए एक सवार की इत्तिला मिली जो राजा गोपालसिंह की चिट्ठी लाया था। आज्ञानुसार वह हाजिर किया गया, सलाम करके उसने राजा गोपालसिंह की चिट्ठी दी और तब विदा लेकर बाहर चला गया।

यह चिट्ठी जो राजा गोपालसिंह ने भेजी थी नाम ही को चिट्ठी थी। असल में यह एक ग्रंथ ही मालूम होता था, जिसमें राजा गोपालसिंह ने दोनों कुमारों, किशोरी, कामिनी, सरयू, तारा, मायारानी और माधवी इत्यादि का खुला सा किस्सा जो कि हम ऊपर के बयानों में लिख आये हैं और जो राजा वीरेन्द्रसिंह को अभी तक मालूम नहीं हुआ था तथा आपने यहाँ का भी कुछ हाल लिख भेजा था और साथ ही यह भी लिखा था कि "आप लोग खंडहर वाली नई इमारत में रहकर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के मिलने का इन्तजार करें" इत्यादि।

राजा सुरेन्द्रसिंह को यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि हम और राजा गोपालसिंह असल में एक ही खानदान की यादगार हैं और इन्द्रजीतसिंह तथा आनन्दसिंह से भी अब बहुत जल्द मुलाकात हुआ चाहती है, अतः यह बात तय पाई कि सब कोई उसी तिलिस्मी खँडहर वाली नई इमारत में चलकर रहें और उसी जगह भूतनाथ का हाल चाल मालूम करें। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात् राजा सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, महारानी, चन्द्रकान्ता, चपला और चम्पा वगैरह सबकी सवारी वहाँ आ पहुँची और मायारानी, दारोगा तथा कैदियों को भी उसी जगह लाकर रखने का इन्तजाम किया गया।

हम बयान कर चुके हैं कि इस तिलिस्मी खँडहर के चारों तरफ अब बहुत बड़ी इमारत बनकर तैयार हो गई है जिसके बनवाने में इन्द्रजीतसिंह ने अपनी बुद्धिमानी का नमूना बड़ी खूबी के साथ दिखाया है––इत्यादि अतः इस समय इन लोगों को यहाँ ठहरने में तकलीफ किसी तरह की नहीं हो सकती थी बल्कि हर तरह का आराम था।

पश्चिम तरफ वाली इमारत के ऊपर वाले खण्डों में कोठरियों और बालाखानों के अतिरिक्त बड़े-बड़े कमरे थे, जिनमें से चार कमरे इस समय बहुत अच्छी तरह सजाए गये थे और उनमें महाराज सुरेन्द्रसिंह, इन्द्रजीतसिंह, वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह का डेरा था। यहाँ भूतनाथ के डेरे वाला बारह नम्बर का कमरा ठीक सामने पड़ता था और वह तिलिस्मी चबूतरा भी यहाँ से उतना ही साफ दिखाई देता था, जिसका भूतनाथ के डेरे से।

इन कमरों के पिछले हिस्से में बाकी लोगों का डेरा था और बचे हुए ऐयारों को इमारत के बाहरी हिस्से में स्थान मिला था और उस तरफ थोड़े से फौजी सिपाहियों और शागिर्द पेशे वालों को भी जगह दी गई थी।

इस जगह राजा साहब और इन्द्र जीतसिंह तथा तेजसिंह के भी आ जाने से भूतनाथ तरद्दुद में पड़ गया और सोचने लगा कि उस तिलिस्मी चबूतरे के अन्दर से