पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१२९

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कमलिनी खुद ही आपके पास चली आ रही हैं!

कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने अफसोस और रंज से झुका सिर उठा कर देखा तो कमलिनी पर निगाह पड़ी जो धीरे-धीरे चलती और मुस्कराती हुई इन्हीं लोगों की तरफ आ रही थीं।


3

नानक को लिए हुए मायारानी दूसरी तरफ चली गई। मगर जिस जगह जाना चाहती थी, वहाँ पहुँचने के पहले ही उसने पुनः एक गोपालसिंह को अपने से कुछ दूर पर देखा और उसी समय तिलिस्मी तमंचे में गोली भर कर निशाना सर किया। गोली उसके घुटने पर लग कर फूट गई और उसमें से निकला हुआ बेहोशी का धुआँ उसके चारों तरफ फैल गया, मगर उसका असर गोपालसिंह पर कुछ भी न हुआ। गोपालसिंह तेजी के साथ लपक मायारानी के पास चले आये और बोले, "मैं वह नकली गोपालसिंह नहीं हूँ जिस पर इस तमंचे का कुछ असर हो, मैं असली गोपालसिंह हूँ और तुझसे यह पूछने के लिए आया हूँ कि बता अब तेरे साथ क्या सलूक किया जाय?"

यह कैफियत देख कर मायारानी घबरा गई और उसे निश्चय हो गया कि अब उसकी मौत उसके सामने आ खड़ी हुई है जो एक पल के लिए भी उसका मुलाहिजा न करेगी, अतः वह गोपालसिंह की बात का कुछ जवाब न दे सकी और नानक की तरफ देखने लगी। गोपालसिंह ने यह कहकर कि 'नानक की तरफ क्या देख रही है मेरी तरफ देख!' एक तमाचा उसके गाल पर इस जोर से मारा कि वह इस सदमे को बर्दाश्त न कर सकी और चक्कर खाकर जमीन पर बैठ गई। गोपालसिंह ने अपनी जेब में से कुछ निकाल कर उसे जबर्दस्ती सुँघाया, जिससे वह बेहोश होकर जमीन पर लेट गई।

इसके बाद गोपालसिंह ने नानक की तरफ, जो डर के मारे खड़ा काँप रहा था, देखा और कहा––

गोपालसिंह––कहो नानक, तुम यहाँ कैसे आ गये? क्या उस भुवनमोहिनी के प्रेम में कमी तो नहीं हो गई या मनोरमा को खोजते हुए तो नहीं आ गए?

नानक––(डरता हुआ हाथ जोड़कर) जी मैं कमलिनीजी से मिलने के लिए आया था। क्योंकि वे मुझ पर कृपा रखती हैं और जब-जब मुझे ग्रहदशा आकर घेरती है तब-तब सहायता करती हैं। मुझे यह खबर लगी थी कि वे इस बाग में आई हुई हैं।

गोपालसिंह––मगर यहाँ आकर कमलिनी की जगह मायारानी से मदद माँगने की नौबत आ गई। बल्कि क्या ताज्जुब कि इसी के साथ तुम यहाँ आये भी हो।

नानक––जी नहीं, मेरा इसका साथ भला क्योंकर हो सकता है, क्योंकि यह मेरी पुरानी दुश्मन है और इसने धोखा देकर मेरे बाप को ऐसी आफत में डाल दिया है कि अभी तक उसे किसी तरह छुटकारा नहीं मिलता।