बदनीयती का हाल मालूम हो चुका है जब दारोगा ने तुझे पकड़ा था।
नानक––मगर आपको दारोगा की बदनीयती का हाल भी तो मालूम हो चुका है।
भैरोंसिंह––इस पचड़े से हमें कोई मतलब नहीं। अभी राजा गोपाल सिंह का आदमी इसको लेने के लिए आता होगा, इसे उसके हवाले कर दीजिएगा।
इन्द्रजीतसिंह––अगर ऐसा हो तो बहुत अच्छी बात है, मगर क्या तुमको ठीक मालूम है कि राजा गोपालसिंह का आदमी आयेगा? क्या इस मामले की खबर उन्हें लग गई है?
भैरोंसिंह––जी हाँ।
इन्द्रजीतसिंह––क्योंकर?
भैरोंसिंह––सो तो मैं नहीं जानता, मगर कमलिनी की जुबानी जो कुछ सुना है वह कहता हूँ।
इन्द्रजीतसिंह––तो क्या तुमसे और मैं कमलिनी से मुलाकात हुई थी? इस समय वे सब कहाँ हैं?
भैरोंसिंह––जी हाँ, हुई थी, और मैं आपकी मुलाकात उन लोगों से करा सकता हूँ। (हाथ का इशारा कर के) वे सब उस तरफ वाले बाग में हैं, और इस समय मैं उन्हीं के साथ था (रुक कर और सामने की तरफ देखकर) वह देखिए, राजा गोपालसिंह का आदमी आ पहुँचा।
दोनों भाइयों ने ताज्जुब के साथ उस तरफ देखा। वास्तव में एक आदमी आ रहा था जिसने पास पहुँच कर एक चिट्ठी इन्द्रजीतसिंह के हाथ में दी और कहा, "मुझे राजा गोपालसिंह ने आपके पास भेजा है।"
इन्द्रजीतसिंह ने उस चिट्ठी को बड़े गौर से देखा। राजा गोपालसिंह का हस्ताक्षर और खास निशान भी पाया। जब निश्चय हो गया कि यह चिट्ठी राजा गोपालसिंह की ही लिखी है तब पढ़ के आनन्दसिंह को दे दिया। उस पत्र में केवल इतना लिखा हुआ था––
"आप नानक तथा मायारानी और माधवी की लाशों को इस आदमी के हवाले करके अलग हो जायँ और जहाँ तक जल्दी हो सके, तिलिस्म का काम पूरा करें।"
इन्द्रजीतसिंह ने उस आदमी से कहा, "नानक और ये दोनों लाशें तुम्हारे सुपुर्द हैं, तुम जो मुनासिब समझो करो, मगर राजा गोपालसिंह को कह देना कि कल तक वह इस बाग में मुझसे जरूर मिल लें।" इसके जवाब में उस आदमी ने "बहुत अच्छा" कहा और दोनों कुमार तथा भैरोंसिंह वहाँ से रवाना होकर बावली पर आए। तीनों ने उस बावली में स्नान करके अपने कपड़े सूखने के लिए पेड़ों पर फैला दिए और इसके बाद ऊपर वाले चबूतरे पर बैठ कर बातचीत करने लगे।