पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१२६

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भैरोंसिंह––कदापि नहीं।

इन्द्रजीतसिंह––अगर ऐसा न होता तो तुम बहुत-सी बातें मुझसे छिपा कर मुझे आफत में न डालते।

भैरोंसिंह––(कुमार के पास जाकर) मैंने कोई बात आपसे नहीं छिपाई और जो कुछ आप समझे हुए हैं वह आपका भ्रम है।

इन्द्रजीतसिंह––क्या तुमने यह नहीं कहा था कि इन्द्रानी तुम्हें इस तिलिस्म में मिली थी और उसने तुम्हारी सहायता की थी?

भैरीसिंह––कहा था और वेशक कहा था।

इन्द्रजीतसिंह––(उन दोनों लाशों की तरफ इशारा करके) फिर यह क्या मामला है? तुम देख रहे हो कि ये किसकी लाशें हैं?

भैरोंसिंह––मैं जानता हूँ कि ये मायारानी और माधवी की लाशें हैं जो नानक के हाथ से मारी गई हैं, मगर इससे मेरा कोई कसूर सावित नहीं होता और न मेरी बात ही झूठी होती है। सम्भव है कि इन दोनों ने जिस तरह आपको धोखा दिया उसी तरह आपका मित्र और साथी समझ कर मुझे भी धोखा दिया हो।

इन्द्रजीतसिंह––(कुष्ट सोचकर) खैर, एक नहीं मैं और भी कई बातों में तुम्हें झूठा साबित करूँगा।

भैरोंसिंह––दिल्लगी के शब्दों को छोड़कर आप मेरी एक बात भी झूठी साबित नहीं कर सकते।

इन्द्रजीतसिंह––सो अब कुछ नहीं, इन पेचीली बातों को छोड़ कर तुम्हें साफ-साफ मेरी बातों का जवाब देना होगा।

भैरोंसिंह––मैं बहुत साफ-साफ आपकी बातों का जवाब दूँगा, आप को जो कुछ पूछना हो पूछे।

इन्द्रजीतसिंह––तुम हम लोगों से विदा होकर कहाँ गए थे? अब कहाँ से आ रहे हो? और इन लाशों की खबर तुम्हें कैसे मिली?

भैरोंसिंह––आप तो एक साथ बहुत से सवाल कर गए जिनका जवाब मुख्तसिर में हो ही नहीं सकता। बेहतर होगा कि आप यहाँ से चलकर उस कमरे में या और किसी ठिकाने बैठे और जो कुछ मैं जवाब देता हूँ उसे गौर से सुनें। मुझे पूरा यकीन है कि निःसन्देह आप लोगों के दिल का खुटका निकल जायगा और आप लोग मुझे बेकसूर समझेंगे, इतना ही नहीं मैं और भी कई बातें आपसे कहूँगा।

इन्द्रजीतसिंह––इन दोनों लाशों को और नानक को यों ही छोड़ दिया जाय?

भैरोंसिंह––क्या हर्ज है, अगर यों ही छोड़ दिया जाय!

नानक––जब कि मैंने आप लोगों के साथ किसी तरह की बुराई नहीं की है तो फिर मुझे इस बेबसी की हालत में क्यों छोड़े जाते हैं? यदि मुझे कुछ इनाम न मिले तो कम-से-कम कैद से तो छुट्टी मिल जाय!

इन्द्रजीतसिंह––ठीक है, मगर अभी हमें यह मालूम होना चाहिए कि तू इस तिलिस्म के अन्दर क्यों कर और किस नीयत से आया था, क्योंकि अभी उसी बाग में तेरी