चन्द्रकान्ता सन्तति
उन्नीसवाँ भाग
1
अठारहवें भाग के अन्त में हम इन्द्रानी और आनन्दी का मारा जाना लिख आये हैं और यह भी लिख चुके हैं कि कुमार के सवाल करने पर नानक ने अपना दोष स्वीकार किया और कहा–– "इन दोनों को मैंने ही मारा और इनाम पाने का काम किया है, ये दोनों बड़ी शैतान थीं।"
एक तो इनके मारे जाने ही से दोनों कुमार दुःखी हो रहे थे, दूसरे नानक के इस उद्दण्डता के साथ जवाब देने ने उन्हें अपने आपे से बाहर कर दिया। कुँअर आनन्दसिंह ने तलवार के कब्जे पर हाथ रखकर बड़े भाई की तरफ देखा, अर्थात् इशारे ही में पूछा कि यदि आज्ञा हो तो नानक को दो टुकड़े कर दिया जाय। कुँअर आनन्दसिंह के इस भाव को नानक भी समझ गया और हँसता हुआ बोला, "आश्चर्य है कि आपके दुश्मनों को मारकर भी मैं दोषी ठहराया जाता हूँ।"
इन्द्रजीतसिंह––क्या ये दोनों हमारी दुश्मन थी?
नानक––बेशक।
इन्द्रजीतसिंह––इसका सबूत क्या है?
नानक––केवल ये दोनों लाशें।
इन्द्रजीतसिंह––इसका क्या मतलब?
नानक––यही कि इन दोनों का चेहरा साफ करने पर आपको मालूम हो जायगा कि ये दोनों वास्तव में मायारानी और माधवी थीं।
इन्द्रजीतसिंह––(चौंककर ताज्जुब से) हैं, मायारानी और माधवी!
नानक––(बात पर जोर देकर) जी हाँ, मायारानी और माधवी!
इन्द्रजीतसिंह––(आश्चर्य और क्रोध से बूढ़े दारोगा की तरफ देखकर) आप सुनते हैं, नानक क्या कह रहा है?
दारोगा––नहीं, कदापि नहीं, नानक झूठा है।
नानक––(लापरवाही से) कोई हर्ज नहीं, यदि कुमार चाहेंगे तो बहुत जल्द मालूम हो जायेगा कि झूठा कौन है।