पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/११३

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वीरेन्द्रसिंह––यद्यपि मैंने भूतनाथ की दिलमाजई कर दी है, परन्तु उसका जी शान्त नहीं हो सकता। खैर जो भी हो, मगर तुम उसे अपनी हिफाजत में समझो और पता लगाओ कि यह मामला कैसा है।

तेजसिंह––ऐसा ही होगा!


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मायारानी ने जब समझा कि वे फौजी सिपाही इस बाग के बाहर हो गये और गोपालसिंह को भी वहाँ न देखा, तब हिम्मत करके अपने ठिकाने से निकली और पुनः बाग में आकर उस तरफ रवाना हुई जिधर उस गोपालसिंह को बेहोश छोड़ आई थी जो उसके चलाए हुए तिलिस्मी तमंचे की गोली के असर से बेहोश होकर बरामदे के नीचे आ रहा था, मगर वहाँ पहुँचने के पहले ही उसने उस दूसरे कुएँ के ऊपर एक गोपालसिंह को देखा जिसे फौजी सिपाहियों ने मिट्टी से पाट दिया था। मायारानी एक पेड़ की आड़ में खड़ी हो गई और उसी जगह से तिलिस्मी तमंचे वाली एक गोली उसने इस गोपालसिंह पर चलाई। गोली लगते ही गोपालसिंह लुढ़ककर जमीन पर आ रहा और मायारानी दौड़ती हुई उसके पास जा पहुँची। थोड़ी देर तक तो उसकी सूरत देखती रही, इसके बाद कमर से खंजर निकालकर गोपालसिंह का सिर काट डाला और तब खुशी-भरी निगाहों से चारों तरफ देखने लगी, यद्यपि उसे पूरा विश्वास न था कि मैंने असली गोपालसिंह को मार डाला है।

यद्यपि दिन बहुत चढ़ चुका था मगर अभी तक उसे जरूरी कामों से निपटने या कुछ खाने-पीने की परवाह न थी या यों कहिए कि उसे इन बातों का मोहलत हो नहीं मिल सकी थी। गोपालसिंह की लाश को उसी जगह छोड़कर वह बाग के तीसरे दर्जे में जाने की नीयत से अपने दीवानखाने में आई और उसी मामूली राह से बाग के तीसरे दर्जे में चली गई जिस राह से एक दिन तेजसिंह वहाँ पहुँचाये गये थे।

वहाँ भी उसने दूर ही से नम्बर दो वाली कोठरी के दरवाजे पर एक गोपालसिंह को बैठे बल्कि कुछ करते हुए देखा। मायारानी ताज्जुब में आकर थोड़ी देर तक तो उस गोपालसिंह को देखती रही, इसके बाद उसे भी उसी तिलिस्मी तमंचे वाली गोली का निशाना बनाया। जब वह भी बेहोश होकर जमीन पर लेट गया तब मायारानी ने वहाँ पहुँचकर उसका भी सिर काट डाला और एक लम्बी साँस लेकर आप-ही-आप बोली, "क्या अब भी असली गोपालसिंह न मरा होगा! मगर अफसोस, उस एक गोपालसिंह पर ऐसी गोली ने कुछ भी असर न किया था। कदाचित असली गोपालसिंह वही हो!"

इसके जवाब में किसी ने कोठरी के अन्दर से कहा, "हाँ, असली गोपालसिंह वह भी न था और असली गोपालसिंह अभी तक नहीं मरा!"

इस बात ने मायारानी का कलेजा हिला दिया और वह काँपती हुई ताज्जुब के