आदमी––(कुछ सोचकर) यह तो बड़ी मुश्किल हुई है, हमारे लिए नहीं, बल्कि तुम्हारे लिए।
भूतनाथ––(काँपकर) सो क्यों! मैंने अब कौन-सा नया अपराध किया है?
आदमी––नया अपराध किया तो नहीं, मगर करना पड़ेगा।
भूतनाथ––नहीं-नहीं, मैं अब कोई अपराध न करूँगा। जो कुछ कर चुका हूँ, उसी का कलंक मिटाना मुश्किल हो रहा है!
आदमी––मगर क्या किया जाय, लाचारी है, अपराध तो करना ही होगा और सो भी इसी समय।
भूतनाथ––(कुछ सोचकर) भला यह तो बताइये कि वह अपराध है क्या और मुझे क्या करना होगा?
आदमी––यह तो जानते ही हो कि बलभद्रसिंह हमारा है।
भूतनाथ––जी हाँ, इस समय तो मेरी जान बचाने वाला है।
आदमी––बेशक।
भूतनाथ––तब आप क्या चाहते हैं?
आदमी––यही कि इसी समय बलभद्रसिंह को बेहोश करके हमारे हवाले कर दो। हम तो उन्हें कल ही उठा ले गये होते, मगर कल हमें निश्चय हो गया कि तुम जाग रहे होंगे और लड़ने लिए अवश्य तैयार हो जाओगे, इसलिए सोचा कि पहले तुम्हें अपना परिचय दे लें, तब यह काम करें जिसमें तुम्हारा दिल भी खुटके में न रहे।
भूतनाथ––मगर यह तो बड़ी मुश्किल होगी। अच्छा, कल राजा वीरेन्द्रसिंह से उनकी मुलाकात तो करा लेने दीजिए।
आदमी––यह नहीं हो सकता, उन्हें हम आज ही ले जायेंगे। नहीं तो हमारा बहुत हर्ज होगा और उस हर्ज में तुम्हारा भी नुकसान है।
भूतनाथ––हाय, नुकसान और दुःख भोगने के लिए तो मैं पैदा ही हुआ हूँ! न जाने मेरी किस्मत में निश्चिन्त होना भी बदा है या नहीं। राजा वीरेन्द्रसिंह सुन चुके हैं कि भूतनाथ, बलभद्रसिंह को छुड़ा लाया है, अब अगर इस समय आप उन्हें ले जायेंगे कल राजा वीरेन्द्रसिंह उन्हें मुझसे माँगेंगे तो क्या जवाब दूँगा?
आदमी––कह देना कि मैं रात को सोया हुआ था, न मालूम बलभद्रसिंह कहाँ चले गये। मुझे कुछ खबर नहीं, आप अपने पहरे वालों से पूछिए।
भूतनाथ––हाँ, यदि आप न मानेंगे तो ऐसा ही करना पड़ेगा।
आदमी––तो बस अब विलम्ब न करो, झटपट जाओ और उन्हें बेहोश करके हमारे पास ले आओ।
भूतनाथ––जिस समय मैंने बलभद्रसिंह को छुड़ाया था, उस समय उन्हें विश्वास नहीं होता था कि मैं उनके साथ नेकी कर रहा हूँ, बड़ी मुश्किल से तो उन्हें विश्वास दिलाया। इस समय आप जानते हैं कि वे भी जाग रहे हैं, आप खुद ही उन्हें बैठे रहने के लिए कह आए हैं, अब मैं उन्हें जबर्दस्ती बेहोश करूँगा तो उनके दिल में क्या आवेगा? क्या वे यह समझेंगे कि भूतनाथ ने नेकनीयती के साथ मेरी जान बचाई थी?