पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१०६

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गोलियों की तासीर का हाल हम पहले कई जगह लिख आये हैं और बता आये हैं कि इन गोलियों में से निकला हुआ धुआँ आला दर्जे की बेहोशी का असर बात की बात में पैदा करता था, अब बेचारे सिपाहियों को दरवाजे तक पहुँचने की भी मोहलत न मिली और तीन ही चार गोलियों में से निकले धुएँ ने उन सभी को बेहोश करके जमीन पर लिटा दिया।

अपनी कार्रवाई को देखकर मायारानी बहुत प्रसन्न हुई, मगर उसकी प्रसन्नता ज्यादा देर तक कायम न रही, क्योंकि उसी समय उसने राजा गोपालसिंह को उन सिपाहियों की तरफ जाते देखा। वह ताज्जुब में आकर उसी जगह खड़ी देखने लगी कि अब क्या होता है। उसने देखा कि राजा गोपालसिंह ने उन सिपाहियों के मध्य में पहुँचकर एक गोला जमीन पर पटका जो गिरते ही भारी आवाज के साथ फट गया और उसमें से इतना ज्यादा धुआँ निकला कि उसने क्रमशः फैलकर हर तरफ से उन सिपाहियों को घेर लिया और फिर हवा होकर आसमान की तरफ उठ गया। उस धुएँ की तासीर से सब सिपाहियों की बेहोशी जाती रही और वे लोग उठकर ताज्जुब के साथ एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। सिपाहियों के अफसर ने अपने पास राजा गोपाल सिंह को मौजूद पाया और निगाह पड़ते ही हाथ जोड़कर बोला, "आपने तो हम लोगों को बाहर चले जाने की आज्ञा दे दी थी, फिर हम लोग बेहोश क्यों कर दिये गये?"

इसके जवाब में गोपालसिंह ने कहा, "तुम लोगों को हमने नहीं, बल्कि कम्बख्त मायारानी ने बेहोश किया था, हमने यहाँ पहुँचकर तुम्हारी बेहोशी दूर कर दी। अब तुम लोग एक सायत भी विलम्ब न करो और शीघ्र ही यहाँ से चले जाओ।"

उस अफसर ने झुककर सलाम किया और अपने साथियों को कुछ इशारा करके वहाँ से चल पड़ा। यह हाल देख मायारानी ने पुनः तिलिस्मी तमंचे की गोलियाँ उन लोगों पर चलाईं, मगर इसका असर कुछ भी न हुआ और वे सब सिपाही राजा गोपालसिंह की बदौलत थोड़ी ही देर में इस तिलिस्मी बाग के बाहर हो गये। फिर मायारानी को यह भी मालूम न हुआ कि राजा गोपालसिंह कहाँ गये और क्या हुए।


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वास्तव में भूतनाथ का हाल बड़ा ही विचित्र है। अभी तक उसका असल भेद खुलने में नहीं आता। वह जहाँ जाता है वहाँ ही एक विचित्र घटना देखने में आती है, जिससे मिलता है, उसी से एक नई बात पैदा होती है, और जब जो कुछ करता है, उसी में एक अनूठापन मालूम होता है। इस समय वह बलभद्रसिंह के साथ चुनारगढ़ वाले तिलिस्म में मौजूद है और वहाँ पहुँचने के साथ ही वह सुन चुका है कि कल राजा वीरेन्द्रसिंह भी इस जगह आने वाले हैं। वीरेन्द्रसिंह को तो आये हुए आज कई दिन हो चुके होते, मगर उन्होंने जान बूझकर रास्ते में बहुत देर लगा दी। नकली किशोरी, कामिनी