तो जानते ही हैं कि भूतनाथ के पास भी कमलिनी का दिया हुआ एक तिलिस्मी खंजर है जिसे भूतनाथ पर कई तरह का शक और मुकदमा कायम होने पर भी कमलिनी ने अपनी बात को याद करके अभी तक नहीं लिया था। आज उसी खंजर की बदौलत भूतनाथ ने इतना बड़ा हौसला किया और बेईमानों के हाथ से शेरअली खाँ को बचा लिया।
जिस समय कल्याणसिंह ने भूतनाथ का मुकाबला करना चाहा, उस समय भूतनाथ ने फुर्ती से अपने चेहरे की नकाब उलट दी और ललकार कर कहा, "आज बहुत दिनों पर तुम लोग भूतनाथ के सामने आये हो, जरा समझ कर लड़ना।"
इतना कहकर भूतनाथ ने तिलिस्मी खंजर से दुश्मनों पर हमला किया, इस नीयत से कि किसी की जान भी न जाय और सब के सब गिरफ्तार कर लिए जायें।
सबसे पहले उसने खंजर का एक साधारण हाथ कल्याणसिंह पर लगाया जिससे उसकी दाहिनी कलाई जिसमें नंगी तलवार का कब्जा था, कटकर जमीन पर गिर पड़ी, साथ ही इसके तिलिस्मी खंजर की तासीर ने उसके बदन में बिजली पैदा कर दी और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा।
जिस समय कल्याणसिंह और उसके साथियों ने भूतनाथ का नाम सुना, उसी समय उनकी हिम्मत का बँटवारा हो गया। आधी हिम्मत तो लाचारी के हिस्से में पड़- कर उनके पास रह गई और आधी हिम्मत उनके उत्साह के साथ निकलकर वायुमण्डल की तरफ पधार गई । भूतनाथ चाहे परले सिरे का बहादुर हो या न हो मगर उसके कर्मों ने उसका नाम बहादुरी और ऐयारी की दुनिया में बड़े रौब और दाब के साथ मशहूर कर रक्खा था। कोई चाहे कैसा ही बहादुर और दिलेर आदमी क्यों न हो, मगर अपने मुकाबले में भूतनाथ का नाम सुनते ही उसकी हिम्मत टूट जाती थी। यहाँ वही मामला हुआ और दुश्मनों की पस्तहिम्मती ने उनकी कस्मत का फैसला भी शीघ्र ही कर दिया।
जिस समय कल्याणसिंह बेहोश होकर जमीन पर गिरा उसी समय एक सिपाही ने भूतनाथ पर तलवार का वार किया । भूतनाथ ने उसे तिलिस्मी खंजर पर रोका और इसके बाद खंजर उसके बदन से छुआ दिया जिसका नतीजा यह निकला कि दुश्मन की तलवार दो टूक हो गई और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा । इसी बीच में बहा- दुर शेरअली खाँ ने दो सिपाहियों को जान से मार गिराया जिन्होंने उस पर हमला किया था । निःसन्देह कल्याणसिंह के साथी इतने ज्यादा थे कि शेरअलीखाँ को मार देते या गिरफ्तार कर लेते, मगर भूतनाथ की मुस्तैदी ने ऐसा न होने दिया। उस कमरे में खुलकर लड़ने की जगह न थी और इस सबब से भी भूतनाथ को फायदा ही पहुँचा । जितनी देर में शेरअली खां ने अपनी हिम्मत और मर्दानगी से चार आदमियों को बेकाम किया उतनी देर में भूतनाथ की चालाकी और फुर्ती की बदौलत तीस आदमी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े । भूतनाथ बदन पर भी हलके दो-चार जख्म लगे, साथ ही इसके भूतनाथ को इस बात का भी विश्वास हो गया कि शेरअली खाँ जो कई जख्म खा चुका था ज्यादा देर तक इन लोगों के मुकाबले में ठहर न सकेगा अतएव उसने सोचा