ही रास्ता हो?
आनन्दसिंह--यह भी हो सकता है, मगर बड़े आश्चर्य की बात है कि खून से लिखी किताब में, जिसे हम लोग अच्छी तरह पढ़ चुके हैं, इस जगह का तथा इन तस्वीरों का हाल कुछ भी नहीं लिखा है।
इन्द्रजीतसिंह इसका कुछ जवाब न देकर यहाँ से रवाना हुआ ही चाहते थे कि बाजे की सुरीली आवाज (जो इस कमरे में बोल रहा था) बन्द हो गई और दो-चार पल तक बन्द रहने बाद पुनः इस ढंग से बोलने लगी जैसे कोई मनुष्य बोलता हो। दोनों कुमारों ने चौंककर उस पर ध्यान दिया तो 'सुनो सुनो सुनो' की आवाज सुनाई पड़ी अर्थात् उस बाजे में से 'सुनो सुनो' की आवाज आ रही थी। दोनों कुमार उत्कंठा के साथ उसके पास गए और ध्यान देकर सुनने लगे। 'सुनो सुनो' की आवाज बहुत देर तक निकलती रही, जिस पर इन्द्रजीतसिंह ने यह कहकर कि 'निःसन्देह यह कोई मतलब की बात कहेगा'--अपनी जेब से एक सादी किताब और जस्ते की कलम निकाली और लिखने के लिए तैयार हो गए। अपना खंजर कमर में रख लिया और आनन्दसिंह को अपने खंजर का कब्जा दबाकर रोशनी करने के लिए कहा। थोडी देर तक और 'सुनो सुनो' की आवाज आती रही और फिर सन्नाटा हो गया। कई पल के बाद फिर धीरे-धीरे आवाज आने लगी और इन्द्रजीतसिंह लिखने लगे। वह आवाज यह थी––
साकरा खति गलि घस्मङ तो चड़ छनेज
काझ खञ या लठ नड कढ रोण औत
रथ इद सध तिन लिप स्मफ कीब ताभ
लीम किय सीर चल लब तीश फिष
रस तीह से कप्रा खप्तग कघ
रोङ इच सछ बाज जेझ में अवेट
सठ बड बाढ तेंण भत रीथ हैंद
जिघ नन कोप तुफ म्हेंव जभ रूम
रथ तर हैल ताब लीश लष गास
याह कक रोख औग रघ सुङ
नाच कछ रोज अझ गा रट एठ
कड हीढ दण फेत सुथ न द नेध सेन
सप मफ झब में भन म आय वेर
तोल दोव हश राष कस रह के
क भीख सुग नघ सङ कच तेछ हौज
इझ सञ कीट तठ कीड बढ औण
रत ताथ लीद इघ सीन कष मफ
रेब में भहै मढूंय ढोर।