पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/७८

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इसलिए तुम लोगों का तहखाने में राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह को मार डालना तो यद्यपि मुश्किल है। हाँ, घेर लिया हो तो ताज्जुब की बात नहीं है, मगर साथ ही इसके इस बात का भी खयाल करना चाहिए कि यद्यपि राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह इस तहखाने का हाल बखूबी नहीं जानते, परन्तु आज इन्द्रदेव उनके साथ है जिसे हम-तुम अच्छी तरह जानते हैं। क्या तुम्हें उस दिन की बात याद नहीं है जिस दिन तुम्हारे पिता ने हमारे सामने तुमसे कहा था कि यहां के तहखाने का हाल हमसे ज्यादा जानने वाला इस दुनिया में यदि कोई है तो केवल इन्द्रदेव !

कल्याणसिंह--(ताज्जुब से) हाँ, मुझे याद है। मगर क्या इन्द्रदेव राजा वीरेन्द्र- सिंह के साथ तहखाने में गये हैं और क्या वीरेन्द्रसिंह ने उन्हें अपना दोस्त बना लिया ?

शेरअलीखाँ--हाँ, अतः यह आशा नहीं हो सकती कि वीरेन्द्रसिंह वगैरह तुम लोगों के काबू में आ जायेंगे, दूसरी बात यह है कि तुम अकेले या दो-एक मददगारों को लेकर इस किले में कर ही क्या सकते हो?

कल्याणसिंह--मैं आपके पास अकेला नहीं आया हूँ वल्कि सौ सिपाही भी साथ लाया हूँ जिन्हें आप आज्ञा देने के साथ ही इसी कोठरी में से निकलते देख सकते हैं । क्या ऐसी हालत में जब कि मालिकों या अफसरों में से यहाँ कोई भी न हो और यहाँ रहने वाली केवल पाँच-सात सौ की फौज बेफिक्र पड़ी हो, हम और आप सौ बहादुरों को साथ लेकर कुछ नहीं कर सकते ? इन्द्रदेव का इस समय वीरेन्द्रसिंह वगैरह के साथ तहखाने में होना बेशक हमारे काम में विघ्न डाल सकता है, मगर मुझे इसकी भी विशेष चिन्ता नहीं है, क्योंकि यदि दुश्मन लोग काबू में न आवेंगे तो हर तरफ से रास्ता बन्द हो जाने के कारण तहखाने के बाहर भी न निकल सकेंगे और भूखे-प्यासे उसी में रहकर मर जायेंगे, और इधर जब आप किले में अपना दखल जमा लेंगे

शेरअलीखाँ--(बात काटकर) ये सब बातें फिजूल की हैं, मैं जानता हूँ कि तुम अपने को बहादुर और होनहार समझते हो, मगर राजा वीरेन्द्रसिंह के प्रबल प्रताप के चमकते हुए सितारे की रोशनी को अपने हाथ की ओट लगाकर नहीं रोक सकते और न उनकी सचाई, सफाई और नेकियों को भूलकर इस किले का रहनेवाला कोई तुम्हारा साथ ही दे सकता है । बुद्धिमानों को तो जाने दो, यहाँ का एक बच्चा भी राजा वीरेन्द्रसिंह का निकल जाना पसन्द न करेगा। अहा, क्या ऐसा जबान का सच्चा, रहमदिल और नेक राजा कोई दूसरा होगा? यह राजा वीरेन्द्रसिंह ही का काम था कि उसने मेरे कसूरों को माफ ही नहीं किया बल्कि इज्जत और आबरू के साथ मुझे अपना मेहमान बनाया। मेरी रग-रग में उनके अहसान का खून भरा है, मेरा बाल-बाल उन्हें दुआ देता है, मेरे दिल में उनकी हिम्मत, मर्दानगी, इन्साफ और रहमदिली का दरिया जोश मार रहा है । ऐसे बहादुर शेरदिल राजा के साथ शेरअली कभी दगाबाजी या बेईमानी नहीं कर सकता, बल्कि ऐसे की ताबेदारी अपनी इज्जत, हुर्मत और नामवरी का वायस समझता है । तुम मेरे दोस्त के लड़के हो, मगर मैं यह जरूर कहूँगा कि तुम्हारे बाप ने वीरेन्द्रसिंह के साथ दगाबाजी की ! खैर, जो कुछ हुआ सो हुआ, अब तुम तो ऐसा न करो । मैं तुम्हें पुरानी मोहब्बत और दोस्ती का वास्ता दिलाता हूँ कि तुम ऐसा मत करो। राजा वीरेन्द्रसिंह