पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/७१

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चिड़िया किसके काम आवेगी !

शिवदत्त--नही-नहीं, तुम इसके सिवाय कोई और तरकीब ऐसी सोचो जिसमें मनोरमा इस समय हमारे साथ से अलग तो जरूर हो जाये, मगर हमारी मुट्ठी से न निकल जाये।

धन्नूसिंह--(सोचकर) अच्छा, तो एक काम किया जाये।

शिवदत्त--वह क्या?

धन्नूसिंह--इसे तो आप निश्चय जानिये कि यदि मनोरमा इस लश्कर से साथ रहेगी तो भूतनाथ के हाथ से कदापि न बचेगी और जैसा कि भूतनाथ कह चुका है वह सरकार के साथ भी बेअदबी जरूर करेगा, इसलिए यह तो अवश्य है कि उसे अलग जरूर किया जाये मगर वह रहे अपने कब्जे ही में। तो बेहतर होगा कि वह मेरे साथ की जाये, मैं जंगल-ही-जंगल एक गुप्त पगडण्डी से जिसे मैं बखूबी जानता हूं रोहतासगढ़ तक उसे ले जाऊँ और जहाँ आप या कुंअर साहब आज्ञा दें ठहरकर राह देखू। भूतनाथ को जब मालूम हो जायेगा कि मनोरमा अलग कर दी गई तब वह उसके खोजने की धुन में लगेगा, मगर मुझे नहीं पा सकता। हाँ, एक बात और है, आप भी यहाँ से शीघ्र ही डेरा उठायें और मनोरमा की पालकी इसी जगह छोड़ दें, जिससे मनोरमा को अलग कर देने का विश्वास भूतनाथ को पूरा-पूरा हो जाये।

कल्याण--हाँ, यह राय बहुत अच्छी है, मैं इसे पसन्द करता हूं।

शिवदत्त--मुझे भी पसन्द है, मगर धन्नूसिंह को टिककर राह देखने का ठिकाना बताना आप ही का काम है।

कल्याण--हाँ-हाँ, मैं बताता हूँ, सुनो धन्नूसिंह !

धन्नूसिंह--जी सरकार !

कल्याण--रोहतासगढ़ पहाड़ी के पूरब की तरफ एक बहुत बड़ा कुआँ है और उस पर एक टूटी-फूटी इमारत भी है।

धन्नू सिंह--जी हाँ, मुझे मालूम है!

कल्याण--अच्छा तो अगर तुम उस कुएँ पर खड़े होकर पहाड़ की तरफ देखोगे तो टीले का ढंग का एक खण्ड पर्वत दिखाई देगा, जिसके ऊपर सूखा हुआ पुराना पीपल का पेड़ है और उसी पेड़ के नीचे एक खोह का मुहाना है। उसी जगह तुम हम लोगों का इन्तजार करना क्योंकि उसी खोह की राह से हम लोग रोहतासगढ़ तहखाने के अन्दर घुसेंगे, मगर उस झील तक पहुंचने का रास्ता जब तक हम न बतावें, तुम वहां नहीं जा सकते। (शिवदत्त से) आप मनोरमा को बुलवाकर सब हाल कहिये। अगर वह मंजूर करे तो हम धन्नूसिंह को रास्ते का हाल समझा दें।

शिवदत्त--(धन्नूसिंह से) तुम ही जाकर उसे बुला लाओ।

"बहुत अच्छा" कहकर धन्नू सिंह चला गया और थोड़ी ही देर में मनोरमा को साथ लिये हुआ आ पहुँचा। उसके विषय में जो कुछ राय हो चुकी थी, उसे कल्याणसिंह ने ऐसे ढंग से मनोरमा को समझाया कि उसने कबूल कर लिया और धन्नूसिंह के साथ चले जाना ही अच्छा समझा। कुंअर कल्याणसिंह ने उस ठीले तक पहुँचने का रास्ता धन्नूसिंह