पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/७०

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है ?' कुंअर कल्याणसिंह ने कहा, "मैं धन्नूसिंह की राय पसन्द करता हूँ। मनोरमा के लिए अपने को आफत में फंसाना बुद्धिमानी का काम नहीं है, अस्तु किसी मुनासिब ढंग से उसे अलग ही कर देना चाहिए।"

शिवदत्त--तिस पर भी अगर जान बचे तो समझें कि ईश्वर की बड़ी कृपा हुई।

कल्याणसिंह--सो क्या?

शिवदत्त--मैं यह सोच रहा हूँ कि भूतनाथ का यहां आना केवल मनोरमा ही के लिए नहीं है। ताज्जुब नहीं कि हम लोगों का कुछ भेद भी उसे मालूम हो और वह हमारे काम में बाधा डाले।

कल्याणसिंह--ठीक है, मगर काम आधा हो चुका है, केवल हमारे और आपके वहां पहुंचने भर की देर है। यदि भूतनाथ हम लोगों का पीछा भी करेगा तो रोहतासगढ़ तहखाने के अन्दर हमारी मर्जी के बिना वह कदापि नहीं जा सकता और जब तक वह मनोरमा को ले जाकर कहीं रखने या अपना कोई काम निकालने का बन्दोबस्त करेगा तब तक तो हम लोग रोहतासगढ़ में पहुँचकर जो कुछ करना है, कर गुजरेंगे।

शिवदत्त--ईश्वर करे ऐसा ही हो, अच्छा अब यह कहिये कि मनोरमा को किस ढंग से अलग करना चाहिए?

कल्याणसिंह--(धन्नूसिंह से) तुम बहुत पुराने और तजुर्बेकार आदमी हो, तुम ही बताओ कि क्या करना चाहिए?

धन्नूसिंह–-मेरी तो यही राय है कि मनोरमा को बुलाकर समझा दिया जाय कि 'अगर तुम हमारे साथ रहोगी तो भूतनाथ तुम्हें कदापि न छोड़ेगा, सो तुम मर्दानी पोशाक पहनकर धन्नूसिंह के (हमारे) साथ शिवदत्तगढ़ की तरफ चली जाओ, वह तुम्हें हिफाजत के साथ वहाँ पहुँचा देगा, जब हम लौटकर तुमसे मिलेंगे तो जैसा होगा, किया जायेगा। अगर तुम अपने आदमियों को साथ ले जाना चाहोगी तो भूतनाथ को मालूम हो जायेगा अतएव तुम्हारा अकेला ही यहाँ से निकल जाना उत्तम है।"

शिवदत्त--ठीक है लेकिन अगर इस बात को मंजूर कर ले तो क्या तुम भी उसी के साथ जाओगे ? तब तो हमारा बड़ा हर्ज होगा!

धन्नू--जी नहीं, मैं चार-पांच कोस तंक उसके साथ चला जाऊंगा, इसके बाद भुलावा देकर उसे छोड़ आपसे आ मिलूंगा।

शिवदत्त--(आश्चर्य से)धन्नूसिंह, क्या तुम्हारी अक्ल में कुछ फर्क पड़ गया है या तुम्हें निसयान (भूल जाने) की बीमारी हो गई है अथवा तुम कोई दूसरे धन्नूसिंह हो गए हो? क्या तुम नहीं जानते कि मनोरमा ने मुझे किस तरह से रुपये की मदद की है और उसके पास कितनी दौलत है ? तुम्हारी मार्फत मनोरमा से कितने ही रुपये मँगवाये थे ? तो क्या इस हीरे की चिड़िया को मैं छोड़ सकता हूँ ? अगर मुझे ऐसा ही करना होता तो तरदुद की जरूरत ही क्या थी, इसी समय कह देते कि हमारे यहाँ से निकल जा!

धन्नूसिंह--(कुछ सोचकर) आपका कहना ठीक है, मैं इन बातों को भूल नहीं गया, मैं खूब जानता हूँ कि वह बेइन्तहा खजाने की चाभी है, मगर मैंने यह बात इसलिए कही कि जब उसके सबब से हमारे सरकार ही आफत में फंस जायेंगे, तो वह हीरे की