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आनन्दसिंह—और इस तिलिस्म के अन्दर आप कैसे आए?

बुड्ढा—मैं एक मामूली आदमी हूँ और आपका एक अदना गुलाम हूँ। इसी तिलिस्म में रहता हूँ और यही तिलिस्म मेरा घर है। आप लोग इस तिलिस्म में आए हैं तो मेरे घर में आए हैं अतएव आप लोगों की मेहमानी और खातिरदारी करना मेरा धर्म है इसीलिए मैं आप लोगों को ढूँढ़ रहा था।

इन्द्रजीतसिंह—अगर आप इसी तिलिस्म में रहते हैं और यह तिलिस्म आपका घर है तो हम लोगों को आप दोस्ती की निगाह से नहीं देख सकते, क्योंकि हम लोग आपका घर अर्थात् यह तिलिस्म तोड़ने के लिए यहाँ आए हैं। और कोई आदमी किसी ऐसे की खातिर नहीं कर सकता जो उसका मकान तोड़ने आया हो, तब हम क्योंकर विश्वास कर सकते हैं कि आप हमें अच्छी निगाह से देखते होंगे या हमारे साथ दगा या फरेब न करेंगे?

बुड्ढा—आपका खयाल बहुत ठीक है, ऐसे समय पर इन सब बातों को सोचना और विचार करना बुद्धिमानी का काम है, परन्तु इस बात का आप दोनों भाइयों को विश्वास करना ही होगा कि मैं आपका दोस्त हूँ। भला सोचिए तो सही कि मैं दुश्मनी करके आपका क्या बिगाड़ सकता हूँ? हाँ, आपकी मेहरबानी से अवश्य फायदा उठा सकता हूँ।

इन्द्रजीतसिंह—हमारी मेहरबानी से आपका क्या फायदा होगा और आप इस तिलिस्म के अन्दर हमारी क्या खातिर करेंगे? इसके अतिरिक्त यह भी बतलाइए कि क्या सबूत पाकर हम लोग आप को अपना दोस्त समझ लेंगे और आपकी बात पर विश्वास कर लेंगे?

बुड्ढा—आपकी मेहरबानी से मुझे बहुत-कुछ फायदा हो सकता है। यदि आप चाहेंगे तो मेरे घर को अर्थात् इस तिलिस्म को बिल्कुल चौपट न करेंगे। मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि आप इस तिलिस्म को न तोड़ें और इससे फायदा न उठाएँ, बल्कि मैं यह कहता हूँ कि इस तिलिस्म को उतना ही तोड़िए जितने से आपको गहरा फायदा पहुँचे और कम फायदे के लिए व्यर्थ उन मजेदार चीजों को चौपट न कीजिए जिनके बनाने में बड़े-बड़े बुद्धिमानों ने वर्षों मेहनत की है और जिसका तमाशा देखकर बड़े-बड़े होशियारों की अक्ल भी चकरा सकती है। अगर इसका थोड़ा-सा हिस्सा आप छोड़ दें तो मेरा खेल-तमाशा बना रहेगा और इसके साथ ही साथ आपके दोस्त गोपालसिंह की इज्जत और नामवरी में भी फर्क न पड़ेगा और वह तिलिस्म के राजा कहलाने लायक बने रहेंगे। मैं इस तिलिस्म में आपकी खातिरदारी अच्छी तरह कर सकता हूँ तथा ऐसे-ऐसे तमाशे दिखा सकता हूँ जो आप तिलिस्म तोड़ने की ताकत रखने पर भी बिना मेरी मदद के नहीं देख सकते, हाँ उसका आनन्द लिए बिना उसको चौपट अवश्य कर सकते हैं। बाकी रही यह बात कि आप मुझ पर भरोसा किस तरह कर सकते हैं, इसका जवाब देना अवश्य ही जरा कठिन है।

इन्द्रजीतसिंह—(कुछ सोचकर) तुम्हारी राजा गोपालसिंह से जान-पहचान है?

बुड्ढा—अच्छी तरह जान-पहचान है बल्कि हम दोनों में मित्रता है।