पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/६५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
65

धन्नूसिंह--मैं इसी जगह पर घूम-घूम कर पहरा दे रहा था कि एक लड़के ने जिसे मैंने आज के सिवाय पहले कभी देखा न था आकर कहा, “एक औरत तुमसे कुछ कहना चाहती है.।" यह सुन कर मुझे ताज्जुब हुआ और मैंने उससे पूछा, "वह औरत कौन है, कहाँ है और मुझ से क्या कहना चाहती है ?" इसके जवाब में लड़का बोला, "सो सब मैं कुछ नहीं जानता, तुम खुद चलो और जो कुछ वह कहती है सुन लो, इसी जगह पास ही में तो है।" इतना सुन कर ताज्जुब करता हुआ मैं उस लड़के के साथ चला और थोड़ी ही दूर पर एक औरत को देखा। (काँप कर) क्या कहूँ, ऐसा दृश्य तो आज तक मैंने देखा ही न था।

शिवदत्त--अच्छा-अच्छा कहो, वह औरत कैसी और किस उम्र की थी ?

धन्नूसिंह--कृपानिधान, वह बड़ी भयानक औरत थी। काला रंग, बड़ी-बड़ी लाल आँखें, और हाथ में लोहे का एक डंडा लिये हुए थी जिसमें बड़े-बड़े काँटे लगे थे और उसके चारों तरफ बड़े-बड़े और भयानक शक्ल के कुत्ते मौजूद थे जो मुझे देखते ही गुर्राने लगे। उस औरत ने कुत्तों को डाँटा जिससे वे चुप हो रहे, मगर चारों तरफ से मुझे घेर कर खड़े हो गये। डर के मारे मेरी अजब हालत हो गई। उस औरत ने मुझसे कहा, "आपने हाथ की तलवार म्यान में कर ले नहीं तो ये कुत्ते तुझे फाड़ खायेंगे।" इतना सुनते ही मैंने तलवार म्यान में कर ली और इसके साथ ही वे कुत्ते मुझसे कुछ दूर हट कर खड़े हो गए। (लम्बी सांस लेकर)ओफ-ओह ! इतने भयानक और बड़े कुत्ते मैंने आज तक नहीं देखे थे !

शिवदत्त--(आश्चर्य और भय से) अच्छा-अच्छा, आगे चलो, तब क्या हुआ ?

धन्नूसिंह-मैंने डरते-डरते उस औरत से पूछा-"आपने मुझे क्यों बुलाया ?" उस औरत ने कहा, "मैं अपनी बहिन मनोरमा से मिलना चाहती हूँ उसे बहुत जल्द मेरे पास ले आ!"

शिवदत्त—(आश्चर्य से) अपनी बहिन मनोरमा से !

धन्नूसिंह--जी हाँ। मुझे यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि मुझे स्वप्न में भी इस बात का गुमान न हो सकता था कि मनोरमा की बहिन ऐसी भयानक राक्षसी होगी ! और महाराज, उसने आपको और कुंअर साहब को अपने पास बुलाने के लिए कहा।

कल्याणसिंह--(चौंक कर) मुझे और महाराज को?

धन्नूसिंह--जी हाँ।

शिवदत्त--अच्छा, तब क्या हुआ

धन्नूसिंह--मैंने कहा कि तुम्हारा सन्देशा मनोरमा को अवश्य दे दंगा, मगर महाराज और कुंअर साहब तुम्हारे कहने से यहाँ नहीं आ सकते।

कल्याणसिंह--तब उसने क्या कहा ?

धन्नूसिंह--बस, मेरा जवाब सुनते वह बिगड़ गई और डॉट कर बोली, "ओ कम्बख्त ! खबरदार ! जो मैं कहती हूँ वह तुझे और तेरे महाराज को करना ही होगा!" (कांप कर) महाराज, उसके डाँटने के साथ ही एक कुत्ता उछल कर मुझ पर