पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/५१

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इन्द्रदेव--जी हाँ, मैं तो पहले ही अर्ज कर चुका हूँ, बल्कि ज्योतिषीजी तथा भैरोंसिंह को भी लेते चलिए।

इतना सुनते ही राजा वीरेन्द्रसिंह उठ खड़े हुए और सब को साथ लिए हुए तहखाने की तरफ रवाना हुए। जगन्नाथ ज्योतिषी को बुलाने के लिए देवीसिंह भेज दिये गये।

ये लोग धीरे-धीरे जब तक तहखाने के दरवाजे पर पहुंचे तब तक जगन्नाथ ज्योतिषी भी आ गये और सब लोग एक साथ मिलकर तहखाने के अन्दर गये।

इस तहखाने के अन्दर जाने वाले रास्ते का हाल हम पहले लिख चुके हैं इसलिए पुनः लिखने की आवश्यकता न जानकर केवल मतलब की बातें ही लिखते हैं।

ये सब लोग तहखाने के अन्दर जाकर उसी दालान में पहुँचे जिसमें तहखाने के दारोगा साहब रहा करते थे और जिसके पीछे की तरफ कई कोठरियाँ थीं। इस समय भैरोंसिंह और देवीसिंह अपने हाथ में मशाल लिए हुए थे, जिसकी रोशनी से बखूबी उजाला हो गया था जोर वहाँ की हरएक चीज साफ-साफ दिखाई दे रही थी। वे लोग इन्द्रदेव के पीछे-पीछे एक कोठरी के अन्दर घुसे जिसमें सदर दरवाजे के अलावा एक दरवाजा और भी था। सब लोग उस दरवाजे में घुसकर दूसरे खण्ड में जा पहुंचे जहां बीचोंबीच में छोटा-सा चौक था उसके चारों तरफ दालान और दालानों के बाद बहुत- सी लोहे के सींखचों से बनी हुई जंगलेदार ऐसी कोठरियाँ थीं जिनके देखने से यह साफ मालूम होता था कि यह कैदखाना है और इन कोठरियों में रहने वाले आदमियों को स्वप्न में भी रोशनी नसीब न होती होगी।

इन्हीं सींखचे वाली कोठरियों में से एक में दारोगा, दूसरे में मायारानी और तीसरी में नकली बलभद्रसिंह कैद था। जब ये लोग यकायक उस कैदखाने में पहुँचे और उजाला हुआ तो तीनों कैदी, जो अब तक एक दूसरे को भी नहीं देख सकते थे, ताज्जुब की निगाहों से इन लोगों को देखने लगे। जिस समय दारोगा की निगाह इन्द्रदेव पर पड़ी उसके दिल में यह खयाल पैदा हुआ कि या तो अब हमको इस कैदखाने में छुट्टी ही मिलेगी या इससे भी ज्यादा दुःख भोगना पड़ेगा।

इन्द्रदेव पहले मायारानी की तरफ गया जिसका रंग एकदम से पीला पड़ गया था और जिसकी आँखों के सामने मौत की भयानक सूरत हरदम फिरा करती थी। दो- तीन पल तक मायारानी को देखने के बाद इन्द्रदेव उस कोठरी के सामने आया जिसमें नकली बलभद्रसिंह कैद था। उसकी सूरत देखते ही इन्द्रदेव ने कहा, "ऐ मेरे लड़कपन के दोस्त बलभद्रसिंह, मैं तुम्हें सलाम करता हूँ। आज ऐसे भयानक कैदखाने में तुम्हें देखकर मुझे बड़ा रंज होता है। तुमने क्या कसूर किया था जो यहाँ भेजे गये?"

नकली बलभद्रसिंह--मैं कुछ नहीं जानता कि मुझ पर क्या दोष लगाया गया है। मैं तो अपनी लड़कियों से मिलकर बहुत खुश हुआ था, मगर अफसोस, राजा साहब ने इन्साफ करने के पहले ही मुझे कैदखाने में भेज दिया।

भैरोंसिंह--राजा साहब ने तुम्हें कैदखाने में नहीं भेजा, बल्कि तुमने खुद कैद- खाने में आने का बन्दोबस्त किया। महाराज ने तो मुझे ताकीद की थी कि तुम्हें इज्जत