पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/५०

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इन्द्रदेव--वे सब कहाँ रखे गए हैं ?

वीरेन्द्रसिंह--यहाँ के तिलिस्मी तहखाने में।

इन्द्रदेव--(कुछ सोचकर) उत्तम तो यही होगा कि मैं उस तहखाने ही में उन कैदियों को देखू और उनसे बातें करूँ, तब जिसकी आवश्यकता हो उसे अपने साथ ले जाऊँ।

वीरेन्द्रसिंह--जैसी तुम्हारी मर्जी, अगर कहो तो हम भी तुम्हारे साथ तहखाने में चलें।

इन्द्रदेव--आप जरूर चलें। यदि यहाँ के तहखाने की कैफियत आपने अच्छी तरह देखी न हो तो मैं आपको तहखाने की सैर भी कराऊँगा वल्कि ये लड़कियाँ भी साथ रहें तो कोई हर्ज नहीं। परन्तु यह काम मैं रात्रि के समय करना चाहता हूँ और इस समय केवल इसी बात की जांच करना चाहता हूँ कि भूतनाथ ने मुझसे जो-जो बातें कही थीं, वे सब सच हैं या झूठ।

वीरेन्द्रसिंह--ऐसा ही होगा।

इसके बाद बहुत देर तक इन्द्रदेव, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी, किशोरी, लाडिली, तेजसिंह और वीरेन्द्रसिंह इत्यादि में बातें होती रहीं और बीती हुई बातों को इन्द्रदेव बड़े गौर से सुनते रहे। इसके बाद भोजन का समय आया और दो-तीन घण्टे के लिए सब कोई जुदा हुए। राजा वीरेन्द्रसिंह की इच्छानुसार इन्द्रदेव की बड़ी खातिर की गई और कह जब तक अकेले रहे, बलभद्रसिंह और कृष्णजिन्न के विषय में गौर करते रहे। जब संध्या हुई, सब कोई फिर उसी जगह इकट्ठे हुए और बातचीत होने लगी। इन्द्रदेव ने राजा बीरेन्द्रसिंह से पूछा, “कृष्णजिन्न का असल हाल आपको मालूम हुआ या नहीं ? क्या उसने अपना परिचय आपको दिया?"

वीरेन्द्रसिंह--पहले तो उसने अपने को बहुत छिपाया, मगर भैरोंसिंह ने गुप्त रीति से पीछा करके उसका हाल जान लिया। जब कृष्ण जिन्न को मालूम हो गया कि भैरोंसिंह ने उसे पहचान लिया तब उसने भैरोंसिंह को बहुत-कुछ ऊँच-नीच समझाकर इस बात की प्रतिज्ञा करा ली कि सिवाय मेरे और तेजसिंह के वह कृष्णजिन्न का असल हाल किसी से न कहे और न हम तीनों में से कोई किसी चौथे को उसका भेद बतावे। पर अब मैं देखता हूँ तो कृष्णजिन्न का असल हाल तुमको भी मालूम होना उचित जान पड़ता है पर साथ ही मैं अपने ऐयार की की हुई प्रतिज्ञा को भी तोड़ना नहीं चाहता।

इन्द्रदेव--निःसन्देह कृष्णजिन्न का हाल जानना मेरे लिए आवश्यक है परन्तु मैं भी यह नहीं पसन्द करता कि भैरोंसिंह या आपकी मंडली में से किसी की प्रतिज्ञा भंग हो। आप इसके लिए चिन्ता न करें, मैं कृष्णजिन्न को पहचाने बिना नहीं रह सकता, बस एक दफे सामना होने की देर है।

वीरेन्द्रसिंह--मेरा भी यही विश्वास है।

इन्द्रदेव--अच्छा तो अब उन कैदियों के पास चलना चाहिए।

वीरेन्द्रसिंह--चलो, हम तैयार हैं। (तेजसिंह, देवीसिंह, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और किशोरी इत्यदि की तरफ इशारा करके) इन सबको भी लेते चलें ?