कि वह आदमी जो कुन्दन के पास आया करता था कौन था?
लाड़िली--पीछे तो मालूम हो ही गया कि वह शेरसिंह थे और उन्होंने कुन्दन के बारे में धोखा खाया।
देवीसिंह--(वीरेन्द्रसिंह से) मैंने एक दफे आपसे अर्ज किया था कि शेरसिंह ने कुन्दन के बारे में धोखा खाने का हाल 'मुझसे खुद बयान' किया था और लाली को नीचा दिखाने या दबाने की नीयत से खून से लिखी किताब तथा 'आंँचल पर गुलामी की दस्तावेज' वाला जुमला भी शेरसिंह ही ने कुन्दन को बताया था और शेरसिंह ने छिपकर किसी दूसरे आदमी की बातचीत से वह हाल मालूम किया था।
वीरेन्द्रसिंह ठीक है, मगर यह नहीं मालूम हुआ कि शेरसिंह ने छिप कर जिन लोगों की बातचीत सुनी थी, वे कौन थे?
देवीसिंह--हाँ, इसका हाल मालूम न हुआ, शायद लाड़िली जानती हो।
लाड़िली--जी हाँ जब मैं यहाँ से लौटकर मायारानी के पास गई तब मुझे मालूम हुआ कि वे लोग मायारानी के दोनों ऐयार, बिहारीसिंह और हरनामसिंह, थे जो हम लोगों का पता लगाने तथा राजकुमारों को गिरफ्तार करने की नीयत से इस तरफ आये हुए थे।
वीरेन्द्रसिंह ठीक है, अच्छा तो अब हम यह सुनना चाहते हैं कि 'खून से लिखी किताब' और 'गुलामी की दस्तावेज' से क्या मतलब था और तू इन शब्दों को सुनकर क्यों डरी थी?
लाड़िली--खून से लिखी किताब को तो आप जानते ही हैं जिसका दूसरा नाम 'रिक्तगन्थ' है और जो आजकल आपके कुंअर इन्द्रजीतसिंह जी के कब्जे में है।
वीरेन्द्र–-हाँ-हाँ, सो क्यों न जानेंगे, वह तो हमारी ही चीज है और हमारे ही यहाँ से चोरी गई थी।
लाडिली--जी हाँ, तो उन शब्दों के विषय में भी मैंने बहुत बड़ा धोखा खाया। अगर मैं कुन्दन को पहचान जाती तो मुझे उन शब्दों से डरने की आवश्यकता न थी। खून से लिखी किताब अर्थात् रिक्तगन्थ से जितना संबंध मुझे था उतना ही कुन्दन को भी मगर कुन्दन ने समझा कि मैं भूतनाथ के रिश्तेदारों में से हूँ जिसने रिक्तगन्थ की चोरी की थी और मैंने यह सोचा कि कुन्दन को मेरा असल हाल मालूम हो गया, वह जान गई कि मैं मायारानी की बहिन लाड़िली हूँ और राजा दिग्विजयसिंह को धोखा देकर रहती हूँ। मैं इस बात को खूब जानती थी कि यह रोहतासगढ़ का तहखाना जमानिया के तिलिस्म से संबंध रखता है और यदि राजा दिग्विजयसिंह के हाथ रिक्तगन्थ लग जाय तो वह बड़ा ही खुश हो क्योंकि वह रिक्तगन्थ का मतलब खूब जानता है और उसे यह भी मालूम था कि भूतनाथ ने रिक्तगन्थ की चोरी की थी और उसके हाथ से मायारानी रिक्तगन्थ ले लेने के उद्योग में लगी हुई थी और उस उद्योग में सबसे भारी हिस्सा मैंने ही लिया था। यह सब हाल उसे कम्बख्त दारोगा की जुबानी मालूम हुआ था क्योंकि वह राजा दिग्विजयसिंह से मिलने के लिए बराबर आया करता था और उससे मिला हुआ था। निःसन्देह अगर मेरा हाल राजा दिग्विजयसिंह को मालूम हो