पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२९

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अजायबघर की किसी कोठरी में बन्द पाया और यह भी वहाँ उसके सुनने में आया कि बलभद्रसिंह पर, जो पानी बरसते में अपने डेरे की तरफ जा रहे थे, डाकुओं ने छापा मारा और उन्हें गिरफ्तार कर ले गए। जब यह खबर राजा गोपालसिंह के कान में पहुँची तो महफिल बरखास्त कर दी गई, अकेली लक्ष्मीदेवी (मुन्दर) महल के अन्दर पहुँचाई गयी और राजा साहब की आज्ञानुसार सैकड़ों आदमी बलभद्रसिंह की खोज में रवाना हो गये। उस समय पानी का बरसना बन्द हो गया था और सुबह की सफेदी आसमान पर अपना दखल जमा चुकी थी। बलभद्रसिंह को खोजने के लिए राजा साहब के आदमियों ने दो दिन तक बहुत-कुछ उद्योग किया, मगर कुछ काम न चला अर्थात् बलभद्रसिंह का पता न लगा और पता लगता भी क्योंकर ? असल तो यह है कि बलभद्र- सिंह भी दारोगा के कब्जे में पड़कर अजायबघर में पहुँच चुके थे।

बलभद्रसिंह पर डाका पड़ने और उनके गायब होने का हाल लेकर जब उनके आदमी लोग घर पहुँचे तो पूरे घर में हाहाकार मच गया। कमलिनी, लाड़िली और उसकी मौसी रोते-रोते बेहाल थीं, मगर क्या हो सकता था। अगर कुछ हो सकता था तो केवल इतना ही कि थोड़े दिन में धीरे-धीरे गम कम होकर केवल सुनने-सुनाने के लिए रह जाता और माया के फेर में पड़े हुए जीव अपने-अपने काम-धंधे में लग जाते। खैर, इस पचड़े को छोड़कर हम बलभद्रसिंह और लक्ष्मीदेवी का हाल लिखते हैं जिससे हमारे किस्से का बड़ा भारी सम्बन्ध है।

दारोगा की यह नीयत नहीं थी कि लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह उसकी कैद में रहें बल्कि वह यह चाहता था कि महीने-बीस दिन के बाद जब हो-हल्ला कम हो जाय और वे लोग अपने घर चले जायें जो विवाह के न्योते में आये हैं तो उन दोनों को मार- कर कर टण्टा मिटा दिया जाए। परन्तु ईश्वर की मर्जी कुछ और ही थी। वह चाहता था कि लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह जीते रहकर बड़े-बड़े कष्ट भोगें और मुद्दत तक मुर्दो से बदतर बने रहें, क्योंकि थोड़े ही दिन बाद बाद दारोगा की राय बदल गई और उसने लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह को हमेशा के लिए अपनी कैद में रखना ही उचित समझा। उसे निश्चय हो गया कि हेलासिंह बड़ा ही बदमाश और शैतान आदमी है और मुन्दर भी सीधी औरत नहीं है। अतएव आश्चर्य नहीं कि लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह के मरने के बाद वे दोनों बेफिक्र हो जायें और यह समझ कर कि अब दारोगा हमारा कुछ नहीं कर सकता, मुझे दूध की मक्खी तरह निकाल बाहर करें तथा जो कुछ मुझे देने का वादा कर चुके हैं, उसके बदले में अँगूठा दिखा दें। उसने सोचा कि यदि लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह हमारी कैद में बने रहेंगे तो हेलासिंह और मुन्दर भी कब्जे के बाहर न जा सकेंगे क्योंकि वे समझेंगे कि अगर दारोगा से बेमुरौवती की जायगी तो वह तुरन्त बल- भद्रसिंह और लक्ष्मीदेवी को प्रकट कर देगा और खुद राजा का खैरखाहं बना रहेगा, उस समय लेने के देने पड़ जाएँगे, इत्यादि।

वास्तव में दारोगा का खयाल बहुत ठीक था। हेलासिंह यही चाहता था कि दारोगा किसी तरह लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह को खपा डाले तो हम लोग निश्चित हो हो जायें, मगर जब उसने देखा कि दारोगा ऐसा नहीं करेगा तो लाचार चुप हो रहा।