गोपालसिंह--जब तक राजा वीरेन्द्रसिंह मुझे न बुलावेंगे, मैं अपनी मर्जी से न जाऊँगा और न मुझे कमलिनी या लक्ष्मीदेवी से मिलने की जल्दी ही है, जब तुम्हारे मुक- दमे का फैसला हो जायगा तब जैसा होगा देखा जायगा।
गोपालसिंह की बात सुनकर भूतनाथ को बड़ा ताज्जुब हुआ, क्योंकि लक्ष्मीदेवी की खबर सुन कर न तो उनके चेहरे पर किसी तरह की खुशी दिखाई दी और न वल- भद्रसिंह का हाल सुन कर उन्हें रंज ही हुआ। कमरे के अन्दर पैर रखते ही भूतनाथ ने जिस शान्त भाव में उन्हें देखा था, वैसी ही सुरत में अब भी देख रहा था। आखिर बहुत कुछ सोचने-विचारने के बाद भूतनाथ ने कहा, "आपने खास वाग में मायारानी के कमरे की तलाशी ली थी?"
गोपालसिंह--तुम भूलते हो। खास बाग के किसी कमरे या कोठरी की तलाशी लेने से कोई काम नहीं चल सकता। या तो तुम हेलासिंह के किसी पक्षपाती को जो उस काम में शरीक रहा हो, गिरफ्तार करो या दारोगा कम्बख्त को दुःख देकर पूछो, मगर अफसोस इतना ही है कि दारोगा राजा वीरेन्द्रसिंह के कब्जे में है और उसके विषय में उनको कुछ लिखना मैं पसन्द नहीं करता।
गोपाल सिंह की इस बात से भूतनाथ को और भी आश्चर्य हुआ और उसने कहा, "तलाशी से मेरा और कोई मतलब नहीं है, मुझे ठीक पता लग चुका है कि मायारानी के पास तस्वीरों की एक किताब थी और उसमें उन लोगों की तस्वीरें थीं जो इस काम में उसके मददगार थे, बस मेरा मतलब उसी किताब के पाने से है और कुछ नहीं।"
गोपालसिंह--हां ठीक है, मुझे इस प्रकार की एक किताब मिली थी मगर उस समय में बड़े क्रोध में था इसलिए कम्बख्त नकली मायारानी का असबाब कपड़ा-लत्ता इत्यादि जो कुछ मेरे हाथ लगा, उसी में उस तस्वीर वाली किताब को भी रखकर मैंने आग लगा दी, मगर अब मुझे यह जान कर अफसोस होता है कि वह किताब बड़े मत- लब की थी।
अब भूतनाथ को निश्चय हो गया कि राजा गोपालसिंह मुझ से बहाना करते हैं और मेरी मदद करना नहीं चाहते। तब क्या करना चाहिए? इसके लिए भूतनाथ सिर झुकाए हुए कुछ सोच रहा था कि राजा गोपालसिंह ने कहा-
गोपालसिंह--मगर भूतनाथ, मुझे याद पड़ता है कि तस्वीर वाली किताब में तुम्हारी तस्वीर भी थी!
भूतनाथ--शायद हो।
गोपालसिंह--खैर, अब तो वह किताब ही जल गई, उसके बारे में भी कहना वृथा है।
भूतनाथ--(उदासी के साथ) मेरी किस्मत, मैं लाचार हूँ। बस मदद के लिए केवल एक वही किताब थी जिसे पाने की उम्मीद में मैं आपके पास आया था, खैर अब जाता हूँ, जो कुछ हैरानी बदी है उसे उठाऊँगा और जिस तरह बनेगा असली वलभद्रसिंह का पता लगाऊंगा।
गोपालसिंह--मैं जानता हूँ कि इस समय जमानिया के बाहर होकर तुम कहाँ