पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२३८

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कामिनी—(सोचकर) सात और सात चौदह, दो सात निकल गए और पांच बचे! अच्छा, अब मैं समझ गई, तुम अभी कह चुकी हो कि अगर पांच बचे तो किसी मित्र का दर्शन हो। अच्छा, अब वह श्लोक सुना दो क्योंकि श्लोक बड़ी जल्दी याद हो जाया करता है।

किशोरी–सुनो-

काकस्य वचनं श्रुत्वा ग्रहीत्वा तृणमुत्तमम्।
त्रयोदशसमायुक्ता मुनिभिः भागमाचरेत्।।
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लाभं कष्टं महासौख्य भोजनं प्रियदर्शनम्।
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कलहो मरणं चैव काको वदति नान्यथा।

(हँसकर) श्लोक तो अशुद्ध है!

किशोरी-अच्छा-अच्छा, रहने दीजिये, अशुद्ध है तो तुम्हारी बला से, तुम बड़ी पण्डित बनकर आई हो तो अपना शुद्ध करा लेना!

कामिनी—(कमला से)खैर, तुम्हारे कहने से मान लिया जाये कि श्लोक अशुद्ध है मगर उसका मतलब तो अशुद्ध नहीं है।

कमला-नहीं-नहीं, मतलब को कौन अशुद्ध कहता है। मतलब तो ठीक और सच है।

कामिनी-तो बस फिर हो चुका। बीबी, दुनिया में श्लोक की बड़ी कदर होती है, पण्डित लोग अगर कोई झूठी बात भी समझाना चाहते हैं तो झट श्लोक बनाकर पढ़ देते हैं, सुननेवाले को विश्वास हो जाता है, और यह तो वास्तव में सच्चा श्लोक है।

कामिनी ने कहा ही था कि सामने से किसी को आते देख चौंक पड़ी और बोली, "अहा हा, देखो, किशोरी बहिन की बात कैसी सच निकली! लो, कमलारानी देख लो और अपना कान पकड़ो!"

जिस जगह किशोरी, कामिनी और कमला बैठी बातें कर रही थीं उसके सामने की तरफ इस स्थान में आने का रास्ता था। यकायक जिस पर निगाह पड़ने से कामिनी चौंकी वह लक्ष्मीदेवी थी, उसके बाद कमलिनी और लाड़िली दिखाई पड़ी और सबके बाद इन्द्रदेव पर नजर पड़ी।

किशोरी—देखो बहिन, हमारी बात कैसी सच निकली!

कामिनी-बेशक-बेशक!

कमला-कृष्ण जिन्न सच ही कह गये थे कि मैं उन तीनों को भी जल्द ही यहां भिजवा दूंगा।

किशोरी—(खड़ी होकर) चलो, हम लोग आगे चलकर उन्हें ले आवें।

ये तीनों लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाड़िली को देखकर बहुत ही खुश हुईं और वहाँ से उठकर कदम बढ़ाती हुई उनकी तरफ चलीं। वे तीनों बीच वाले मकान के पास पहुँचने न पाई थीं कि ये सब उनके पास जा पहुंची और इन्द्रदेव को प्रणाम करने के बाद