तीनों लौंडियों के मारे जाने की खबर सुनकर किशोरी और कामिनी के रौंगटे खड़े हो गए। किशोरी ने कहा, "निःसन्देह कृष्ण जिन्न देवता हैं। उनकी अद्भुत शक्ति, उनकी बुद्धि और उनके विचारों की जहाँ तक तारीफ की जाये उचित है। उन्होंने जो कुछ सोचा, ठीक ही निकला।"
भैरोंसिंह–इसमें कोई शक नहीं। तुम लोगों को यहाँ बुलाकर उन्होंने बड़ा ही काम किया। मनोरमा तो गिरफ्तार हो गई और भाग जाने लायक भी न रही और उसके मददगार भी अगर लश्कर के साथ होंगे तो अब गिरफ्तार हुए बिना नहीं रह सकते, इसके अतिरिक्त...
कमला-हम लोगों को मरा जानकर कोई पीछा भी न करेगा और जब दोनों कुमार तिलिस्म तोड़कर चुनारगढ़ में आ जायेंगे, तब तो यही दुनिया हम लोगों के लिए स्वर्ग हो जायेगी।
बहुत देर तक इन चारों में बातचीत होती रही। इसके बाद भैरोंसिंह ने वहाँ की अच्छी तरह सैर की और खा-पीकर निश्चिन्त होने के बाद इधर-उधर की बातों से उन तीनों का दिल बहलाने लगे और जब तक वहाँ रहे, उन लोगों को उदास न होने दिया।
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संध्या होने में अभी दो घण्टे से ज्यादा देर है मगर सूर्य भगवान् पहाड़ की आड़ में
हो गए इसलिए उस स्थान में जिसमें किशोरी, कामिनी और कमला हैं, पूरब की तरफ
वाली पहाड़ी के ऊपरी हिस्से के सिवाय और कहीं धूप नहीं है। समय अच्छा और स्थान
बहुत ही रमणीक मालूम पड़ता है। भैरोंसिंह एक पेड़ के नीचे बैठे हुए कुछ बना रहे हैं और
किशोरी, कामिनी तथा कमला बॅगले से कुछ दूर पर एक पत्थर की चट्टान पर बैठी बातें
कर रही हैं।
कमला ने कहा, "बैठे-बैठे जी घबरा गया !"
कामिनी-तो तुम भी भैरोंसिंह के पास जा बैठो और पेड़ की छाल को छील- छीलकर रस्सी बँटो।
कमला- जी मैं ऐसे गन्दे काम नहीं करती। मेरा मतलब यह था कि अगर हुक्म हो तो मैं इस पहाड़ी के बाहर जाकर इधर-उधर की कुछ खबर ले आऊँ या जमानिया में जाकर इसी बात का पता लगाऊँ कि राजा गोपालसिंह के दिल से लक्ष्मीदेवी की मुहब्बत एकदम क्यों जाती रही जो आज तक उस बेचारी को पूछने के लिए एक चिड़िया का बच्चा भी नहीं भेजा।
किशोरी–बहिन, इस बात का तो मुझे भी बड़ा रंज है। मैं सच कहती हूँ कि हम लोगों में से कोई भी ऐसा नहीं है जो उसके दुःख की बराबरी करे। राजा गोपालसिंह की बदौलत उसने जो-जो तकलीफें उठाई, उन्हें सुनने और याद करने से कलेजा काँप जाता