पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२०३

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जब वह एक आदमी को समाप्त कर चुकी तो उस दूसरे के पास आई जो कुएं पर खड़ा अपने मालिक को निकालने की फिक्र कर रहा था। एक ईंट का टुकड़ा उसकी तरफ जोर से फेंका जो गर्दन में लगा। वह आदमी हाथ में नंगी तलवार लिये उस औरत पर झपटा मगर उसे पा न सका। उस औरत ने फिर उस आदमी को दौड़ाना शुरू किया और बीच- बीच में ईंट और पत्थरों से उसकी भी खबर लेती जाती थी। वह आदमी भी ईंट और पत्थर के टुकड़े उस औरत पर फेंकता था, मगर वह औरत इतनी तेज और फुर्तीली थी कि उसके सब वार बराबर बचाती चली गई, मगर उसका वार एक भी खाली न जाता था। आखिर उस आदमी ने भी इतनी मार खाई कि खड़ा होना मुश्किल हो गया और वह हताश होकर जमीन पर बैठ गया। बस, जमीन पर बैठने की देर थी कि उस औरत ने धड़ाधड़ पत्थर मारना शुरू किया, यहाँ तक कि वह अधमरा होकर जमीन पर लेट गया। उस औरत ने उसके पास पहुँचकर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया, इसके बाद दौड़ती हुई मेरे पास आई और बोली, "बेटी, तूने देखा कि मैंने तेरे दुश्मनों की कैसी खबर ली? मैं तो उस कम्बख्त (दारोगा) को भी पत्थर मार-मारकर मार डालती मगर डरती हूँ कि विलम्ब हो जाने से उसके और भी संगी-साथी न आ पहुँचें, अगर ऐसा हुआ तो बड़ी मुश्किल होगी, अस्तु उसे जाने दे और मेरे साथ चल, मैं तुझे पूरी हिफाजत से तेरे घर या जहाँ कहेगी, वहां पहुंचा दूंगी।"

यद्यपि चाबुक की मार खाने से मेरी बुरी हालत हो गई थी, मगर अपने दुश्मनों की ऐसी दशा देख मैं खुश हो गई और उस औरत को साक्षात् माता समझकर उसके पैरों पर गिर पड़ी। उसने मुझे बड़े प्यार से उठाकर गले लगा लिया और मेरा हाथ पकड़े हुए बाग के पिछली तरफ ले चली। बाग के पीछे की तरफ बाहर निकल जाने के लिए एक खिड़की थी और उसके पास सरपत का एक साधारण जंगल था। वह औरत मुझको लिये उसी सरपत के जंगल में घुस गई। उस जंगल में उस औरत का घोड़ा बँधा हुआ था। उसने घोड़ा खोला, चारजामा ठीक करके उस पर मुझे बैठाया और पीछे आप भी सवार हो गई, घोड़ा तेजी के साथ रवाना हुआ और तब मैं समझी कि मेरी जान बच गई।

वह औरत पहर भर तक बराबर घोड़ा फेंके चली गई और जब एक घने जंगल में पहुंची तो घोड़े की चाल धीमी कर देर तक धीरे-धीरे चलकर एक कुटी के पास पहुंची जिसके दरवाजे पर दो-तीन आदमी बैठे आपस में कुछ बातें कर रहे थे। उस औरत को देखते ही वे लोग उठ खड़े हुए और अदब के साथ सलाम करके घोड़े के पास चले आए। औरत घोड़े के नीचे उतरकर मुझे उतार लिया। उन आदमियों में से एक ने घोड़े की लगाम थाम ली और उसे टहलाने को ले गया, दूसरे आदमी ने कुछ इशारा पाकर कुटी से एक कम्बल ला जमीन पर बिछा दिया और एक आदमी हाथ घड़ा, लोटा और रस्सी लेकर जल भरने के लिए चला गया। औरत ने मुझे कम्बल पर बैठने का इशारा किया और आप भी कमर हलकी करने के बाद उसी कम्बल पर बैठ गई, तब उसने मुझसे कहा कि अब तू अपना सच्चा-सच्चा हाल बता कि तू कौन है और इस मुसीबत में क्योंकर फंसी तथा वह बुड्ढा शैतान कौन था, जब तक मेरा आदमी पानी लाता है और खाने-पीने का बन्दोबस्त करता है।