पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२०२

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औरत--चाहे मैं कोई होऊँ इससे कुछ मतलब नहीं तुम जो कुछ चाहते हो मुझसे कहो, मैं तुम्हारा काम पूरा कर दूंगी। चाबुक मारते समय जो कुछ तुम कहते हो, उससे मालूम होता है इस लड़की से तुम कुछ लिखाना चाहते हो ! इससे जो कुछ लिखवाना चाहते हो, मुझे बताओ मैं लिखवा दूंगी। इस समय मारने-पीटने से कोई काम न चलेगा क्योंकि इसके एक पक्षपाती ने, जिसने अभी तुम्हारे आने की खबर दी थी, इसे समझा- बुझा के बहुत पक्का कर दिया है और खुद (हाथ का इशारा करके)उस कुएँ में जा छिपा है, वह जरूर तुम पर वार करेगा। मेरे साथ चलो मैं दिखा दूं। पहले उसे दुरुस्त करो, उसके बाद जो कुछ इस लड़की से कहोगे यह झख मार के कर देगी।

दारोगा--क्या तूने खुद उस आदमी को देखा था?

औरत-–हाँ-हाँ, कहती तो हूँ कि मेरे साथ उस कुएँ पर चलो, मैं उस आदमी को दिखा देती हूँ। दस-बारह कदम पर कुआं है, कुछ दूर तो है नहीं।

दारोगा--अच्छा चलकर मुझे बताओ,(अपने दोनों आदमियों से) तुम दोनों इस लड़की के पास खड़े रहो।

वह औरत कुएँ की तरफ बढ़ी और दारोगा उसके पीछे-पीछे चला। वास्तव में वह कुआँ बहुत दूर न था। जब दारोगा को लिए हुए वह औरत कुएँ पर पहुंची तो अन्दर झांककर बोली, "देखो, वह छिपकर बैठा है !"

दारोगा ने ज्यों ही झांककर कुएं के अन्दर देखा उस औरत ने पीछे से धक्का दिया और वह कम्बख्त धड़ाम से कुएँ के अन्दर जा रहा। यह कैफियत उसके दोनों साथी दूर से देख रहे थे और मैं भी देख रही थी। जब दारोगा के दोनों साथियों ने देखा कि उस औरत ने जान-बूझकर हमारे मालिक को कुएँ में धकेल दिया है, तो दोनों आदमी तलवार खींचकर उस औरत की तरफ दौड़े। जब पास पहुंचे तो वह औरत जोर से हँसी और एक तरफ को भाग चली। उन दोनों ने उसका पीछा किया, मगर वह औरत दौड़ने में इतनी तेज थी कि वे दोनों उसे पा न सकते थे। उसी बगीचे के अन्दर वह औरत चक्कर देने लगी और उन दोनों के हाथ न आई। वह समय उन दोनों के लिए बड़ा ही कठिन था, वे दोनों इस बात को जरूर सोचते होंगे कि अगर अपने मालिक को बचाने की नीयत से कुएँ पर जाते हैं तो वह औरत भाग जायेगी या ताज्जुब नहीं कि उन्हें भी उसी कुएं में ढकेल दे। आखिर जब औरत ने उन दोनों को खूब दौड़ाया तो उन दोनों ने आपस में कुछ बात तय की और एक आदमी तो उस कुएं की तरफ चला तथा दूसरे ने उस औरत का पीछा किया। जब उस औरत ने देखा कि अब दो में से एक ही रह गया तो अब वह खड़ी हो गई और जमीन पर से ईंट का टुकड़ा उठाकर उस जादमी की तरफ जोर से फेंका। उस औरत का निशाना बहुत ही सच्चा था जिससे वह आदमी बच न सका और ईंट का टुकड़ा इस जोर से उसके सिर में लगा कि उसका सिर फट गया और वह दोनों हाथों से सिर को पकड़कर वहीं जमीन पर बैठ गया। उस औरत ने पुनः दूसरी इंट मारी तीसरी मारी और चौथी ईंट खाकर तो वह जमीन पर लेट गया। उसी समय उसने खंजर निकाल लिया जो उसकी कमर में छिपा हुआ था और दौड़ती हुई उसके पास जाकर खंजर से उसका सिर काट डाला। मैं यह तमाशा दूर से देख रही थी।